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ર૭૨
विधायिजीवनरश्मिः
depends on the growth of semen accompanied by discriminative faculty. (6)
वीर्य-नाश के परिणामस्वरूप मनुष्य अनेक रोगों का शिकार बनता है; उस हालत में उसकी सब उमंग, उसका सब उल्लास नष्ट हो जाता है,
और बेचारा दुःखी जोवन जोता हैं। निःसन्देह, जीवन का विकास विवेकविभूषित वीर्योत्कर्ष पर आश्रित है । ६.
यथा यथा ब्रह्म परिक्षतं स्यात् तथा तथा शक्तिविदारणं स्यात् । उत्साहधैोमिवलप्रकाश -विभूतिभूमिः खलु शीलवृत्तम् ॥ ७ ॥
જેમ જેમ બ્રહ્મચર્યનો નાશ કરાય છે, તેમ તેમ શક્તિ, બળ હણાતાં જાય छ. शाय-हाय२१-१२यरित्र परे५२ साड, धैयः, मि, तेज, બલ, સ્કૂત્તિ અને કપટુતા એ બધી વિભૂતિઓની ઉપજ-ભૂમિ છે. ૭
The more one's virtue of celibacy is decayed, the inore one's strength or spirit is ruined. Good moral conduct is indeed, the field productive of enthusiasm, courage. sentinents, lustre, agility and energy. (7)
ज्यों ज्यों ब्रह्मचर्य का नाश किया जाता है त्यों त्यों बज एवं शक्ति का क्षय होता जाता है । याद रखना चाहिए कि उत्साह, धैर्य, मि, तेज, बल, स्फूर्ति और कर्मपटुता इन सब विभूतियों की उपन-भूमि सुशील आचरण है। ७
मनोवलं खं प्रकटीकुरुष्व ! प्रोत्साहपूरं हृदि वाहयस्व ! आवश्यकं स्यात् खलु कार्यसिद्धाविच्छाबलं निश्चलधैर्यशालि
॥८॥
તારા મનેબલને પ્રગટાવ ! હૃદયમાં ઉત્સાહનાં પૂર વહેવડાવ! ધ્યાનમાં રાખ કે, કાર્યસિદ્ધિની પાછળ ઈચ્છાશક્તિની જરૂર છે, અને તે ઈચ્છાશક્તિ એવી કે અખૂટ ધર્યથી ભરપૂર હોય. ૮
Aho! Shrutgyanam