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________________ प्राचीनलिपिमाला. ६-चाव के पहिले रूप को उलटने से दसरा रूप बना, जिसका रुख पलटने से तीसरा बना, फिर उसकी दाहिनी तरफ की झुकी हुई लकीर के स्थान में ग्रंथि बना देने से चौथा रूप धना. __ वर्तमान अंग्रेजी छापे के अक्षरों से१-'ए' से 'अ' AAHH २-'बी' से 'ब' BB0 ३-'मी' से 'च' C d d ४-'डी' से 'द' D 202 ६-'गफ' से 'फ' FEbb इनमें में प्रत्येक अक्षर के रूपांतरों में पहिला रूप वर्तमान अंग्रेजी छापे का अक्षर और मं. तिम रूप अशोक के लेखों से है. पीच के कलरूप वूलर के सूत्रों के अनुसार अनुमान किये हैं जिनका विचरण इस तरह है १-'ए' से पहिले रूप के ऊपर के कोण को खोल देने से दूसरा रूप बना, जिसकी दोनों तिरछी बड़ी लीरों को सीधी करने से तीसरा रूप हुश्रा और उससे चौथा. २-'वी की धीच की लकीर को मिटाने से दसरा रूप और उसकी दाहिनी तरफ़ की धक रेखा को सीधी करने से तीसरा बना. ३-'सी'की दाहिनी तरफ एक स्वड़ी लकीर जोड़ने से दूसरा रूप बन गया और उससे तीसरा. ४.-'ही' की बाई ओर की बड़ी लकीर को मिटाने से दूसरा रूप बना, जिसके बाई तरफ के किनारों के साथ एक एक छोटी खड़ी लकीर जोड़ने में तीसरा रूप बन गया. ५--ई की बीच की लकीर मिटा देने से दूसरा रूप; उसकी दाहिनी तरफ की दोनों लकीरों की तिरछी करने में लीमरा रूप और उसमे चौथा बन गया ६-ॉफ को उलटने से दूसरा रूप बना, जिसके नीचे की दाहिनी तरफ की दो आड़ी लकीरी को एक खड़ी लकीर से जोड़ देने से तीसरा रूप और उससे चौधा बन गया. तक्षशिला के अरमइक लेख मे तथा अंग्रेजी के छापे के अक्षरी से ब्राह्मी लिपि की उत्पत्ति बताने में फिनिशिचत की अपेक्षा अधिक सरलना होने पर भी यह नहीं कहा जा सकता कि उनसे प्रामी अबर यने हैं. ऐसी दशा में बलर का मत किसी तरह स्वीकार नहीं हो सकता क्योंकि फिनिशिअन के गिमेल (ग) और ब्राह्मी के 'ग' को छोड़ कर अन्य किसी समान उचारण वाले अक्षर में समा।ता नहीं है. बृलर का मारा पन्न बींचतान ही है. इसीसेलर की भारतवर्ष की प्राधी लिपि की उत्पत्ति के छपने के बाद 'बुदिस्ट इंडिया' नामक पुस्तक के कर्ता डॉ. राइस डेविडज को यह माना पड़ा कि 'ब्राह्मी लिपि के अक्षर न तो उत्तरी और न दक्षिणी सेमिटिक अक्षरों से बने हैं, ऐसे ही'एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटॅनिका' नामक महान अंग्रेजी विश्वकोश में इस विषय में यह लिखा गया कि 'बूलर का कथन यद्यपि पाण्डित्य और चतुराई से भरा हुभा है तो भी यह मानना पड़ता है कि पर अधिक निश्चय नहीं दिलाता. इस लिपि का उद्भव कहां से हमा इसका निर्णय निश्चित रूप से करने के पहिले इसके प्राचीन इतिहास के और भी प्रमाणों का ढूंढना आवश्यक है, और ऐसे प्रमाण मिल सकेंगे इसमें कोई संदेह नहीं यदि ब्राहली और खरोष्ठी दोनों लिपियां फिनिशिअन् से, जिर.की उत्पत्ति ई.स. पूर्व की १० वीं राताब्दी के पास पास मानी जाती है, निकली होती तो ई.स. पूर्व की तीसरी शताब्दी में, अर्थात् अशोक के समय, उनमें परस्पर यहुत कुछ समानना होनी चाहिये थी जैमी कि अशोक के समय की । देखो ऊपर, पृ.२. प., नि: जि. ३३, पृ.६०३. Aho! Shrutgyanam
SR No.009672
Book TitleBharatiya Prachin Lipimala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaurishankar H Oza
PublisherMunshiram Manoharlal Publisher's Pvt Ltd New Delhi
Publication Year1971
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size8 MB
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