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________________ ब्राह्मी लिपि की उत्पति २५ १- लेफ के पहिले रूप का रुख बदलने से दूसरा रूप बना दूसरे की खड़ी लकीर को दा हिनी तरफ हटाने से तीसरा ना. उत्तपर से चौथा रूप बन गया. २- हे के पहिले रूप की खड़ी लकीरों को समान लंबाई की बनाने और तीनों घड़ी लकीरों को सीधी करने से दूसरा रूप बना. इस प्रकार सीधे बने हुए खड़े अक्षर को बड़ा करने से तीसरा रूप बना, जिसके ऊपर के भाग की थाड़ी लकीरों को मिटा देने से चौथा रूप बना. फिर बाई ओर की पहिली खड़ी लकीर को लंबी कर देने से पांचवां रूप बन गया. ३- योध की सब तिरछी लकीरों को सीधी करने से दूसरा रूप बना, जिसका रुख बद लने से तीसरा रूप बना. हम खड़े अक्षर को बड़ा करने से चौथा रूप बना. उसकी नीचे लटकती हुई लकीर को ऊपर की तरफ़ फिरा देने से पांचवां रूप बना, जिसकी मध्य की खड़ी लकीर को लंबी करने से छठा रूप बना और उसपर से सानवा. ४- मेम् के नीचे वाली बाई ओर मुड़ी हुई लकीर को ऊपर की तरफ बढ़ा कर ग्रंथि बना देने से दूसरा रूप बना. फिर ऊपर के बाई तरफ के कोण वाले हिस्सों को मिटा कर उनकी जगह अर्धवृत सी रेखा बना देने से तीसरा रूप बना. उसके ग्रंथि वाले भाग को बढ़ा कर ऊपर निकालने से चौथा रूप बन गया. बूलर के माने हुए अक्षरों के ये फेरफार ऐसे हैं कि उनके अनुसार अक्षरों का तोड़ मरोड़ करने से केवल फिनिशिअन से ब्राह्मी की उत्पत्ति बतलाई जा सकती हैं ऐसा ही नहीं, किंतु दुनिया भर की चाहे जिस लिपि से किसी भी लिपि की उत्पत्ति आसानी से सिद्ध हो सकती है. उदाहरण के लिये तक्षशिला के अरमहक लिपि के लेख के अक्षरों से तथा वर्तमान अंग्रेजी टाइप (छापे के अक्षरों) से ब्राह्मी लिपि के अचर कितनी आसानी से बनाये जा सकते हैं यह बतलाया जाता है तक्षशिला के लेख से- १- अलफ से ' अ ' -X X प्र २- बेथ से 'ब 500 ३- गिमेल से 'ग'-^^ ४- दालेध से द-455 से ह - AV KU ५ ६- घाव में 'व - 7 JLB इन ६ अक्षरों के रूपांतरों में प्रत्येक का पहिया रूप तक्षशिला के लेख से लिया गया है और अंतिम रूप अशोक के लेखों के अनुसार है. बीच के परिवर्तन कूलर के माने नियमों के अनु सार अनुमान किये गये हैं, जिनका ब्यौरा इस तरह है हुए १ - अलेफ के पहिले रूप के ऊपर के तथा नीचे के कोनों को कुछ चौड़े करने से दूसरा रूप बना, उसकी दाहिनी तरफ की दोनों तिरछी लकीरों को सीधी करने से तीसरा रूप बन गया. २- बेध के पहिले म्प के ऊपर की छोटी सी खड़ी लकीर को मिटाने से दूसरा रूप बना की बाई तरफ़ एक खड़ी लकीर खींचने से तीसरा रूप बन गया. उस. ३-गिनेल 'ग' से मिलता ही है. ४- दालेथ के पहिले रूप के नीचे की खड़ी लकीर के साथ बाई तरफ़ एक बड़ी लकीर जोड़ने से दूसरा रूप बना और उस नई जुड़ी हुई लकीर के बाएं किनारे पर जरासी छोटी खड़ी लकीर जोड़ने से तीसरा रूप बन गया. ५ - हे के पहिले रूप को उलट देने से दूसरा रूप बना; उसका रुख पलटने से तीसरा रूप यम गया जो अशोक के सारनाथ के लेख के 'ह' से मिलता हुआ है और चौथा रूप गिरनार के लेख से है. Aho! Shrutgyanam
SR No.009672
Book TitleBharatiya Prachin Lipimala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGaurishankar H Oza
PublisherMunshiram Manoharlal Publisher's Pvt Ltd New Delhi
Publication Year1971
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size8 MB
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