________________
( ८६ )
भुवनदीपकः ।
अर्थ - विशेषकरके मंगल या राहु लग्नमें हो तो इन्द्र भी युद्ध करनेवाला हो तो भी किला नहीं टूट सकता है फिर इतर मनुष्यकी तो बातही क्या है ॥ ११८ ॥
सप्तमो यदि राहुः स्याद्दुर्गे झटिति भज्यते ॥ मूत क्रूरः शुभोऽमुष्मिन क्रूरदृष्टिर्न शोभना ११९
सं०टी० - यदि पृच्छालग्नात्सप्तमो राहुभवति तदा दुर्गभंगं झटिति शीघ्रं भवतीति वाच्यम् । अत्र कारणमाह - यतः कारणादमुष्मिन् दुर्गभंगप्रश्ने क्रूरो ग्रहो मूर्ती च वर्तमानः शुभो भवति । यद्यपि परो ग्रहः सप्तमस्थानत्वात्संपूर्ण दृष्टिभवत्यतः क्रूरदृष्टिर्न शोभनेति भावः ॥ ११९ ॥ इति दुर्गभंगद्वारं सप्तविंशम् ॥ २७ ॥
अर्थ-यदि प्रश्न लग्नसे सातवें स्थानमें राहु हो तो शीघ्र किला टूट जायगा, कारण यह है कि, ऐसे प्रश्नमें लग्न में पापग्रह शुभ होते हैं और पापग्रहकी दृष्टि शुभ नहीं होती अर्थात् सप्तमस्थान में पापग्रहके रहने से लग्नपर पूर्ण दृष्टि होती है, अतः किलाभंग कहना ॥ ११९ ॥ इति दुर्गभंगद्वारम् ॥ २७ ॥
एवं चौर्याय यामीति मूर्तों क्रूरः शुभावहः ॥ दृष्टिः शुभावहाऽत्रापि न क्रूरस्य कदाचन १२० ॥
"Aho Shrut Gyanam"