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________________ (८४) भुवनदीपकः । मृत्युकारको योगो भवति अथवा चन्द्रसमीपस्थे क्रूरग्रहे सति तदा मृत्युयोगोभवति ॥ ११५ ॥ - अर्थ-अब छव्वीसवें द्वारमें रोगीके जीवन मरणका विचार लिखते हैं-यदि प्रश्नलग्नसे सातवें, बरहवें, दूसरे स्थानमें पापग्रह हों और लग्न, आठवें, छठे स्थानमें चन्द्रमा हो तो शीघ्र मृत्यु करनेवाला योग होता है अथवा चन्द्रमाके दोनों तरफ यदि पापग्रह हों तो भी शीघ्र मृत्युकारक योग होता है ॥ ११५ ।। लग्ने रविः स्मरे चन्द्रो भवेद्योगोऽयमेव हि ॥ एतेषु रोगिणो मृत्युः सधस्त्वन्यस्य चापदः११६ सं० टी०-तथा यदि लग्ने रविर्भवति, स्मरे सप्तमे चन्द्रो भवति तदाऽप्ययमेव योगो भवति । एतेषु प्रागुक्तेषु मृत्युयोगेषु रोगिणः पृच्छायां मरणं वक्तव्यम् । तथा अन्यस्य लाभादिप्रच्छकस्य चापदो वक्तव्या इति ॥ ११६ ॥ इति मृत्युयोगद्वारं षड्विंशम् ॥२६॥ अर्थ-लग्नमें रवि और सातवें स्थानमें चन्द्रमा हो तो भी मृत्युयोग होता है। इन योगोंमें :रोगीका प्रश्न किया गया हो तो शीघ्र मरण होता है, अन्य विषयका प्रश्न हो तो आपद ( विपत्ति ) होती है ॥ ११६ ॥ इति मृत्युयोगद्वारम् ॥ २६ ॥ "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009670
Book TitleBhuvandipak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBacchu Sharm
PublisherGangavishnu Shrikrushnadas
Publication Year1940
Total Pages138
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size4 MB
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