________________
संस्कृतटीका-भाषाटीकासमेतः। (३१) चोरवयो वाच्यमित्यर्थः । वर्णजात्यादिकञ्च प्रागुक्तयुक्त्या विप्रादि ज्ञेयम् । इति पूर्वसंबन्धः ॥ ४१ ॥ __अर्थ-अब उस जीवकी अवस्था ( उमर) जाननेके लिये ग्रहोंकी उमर कहते हैं-मंगल युवा अवस्थाका है, बुध बालक, चन्द्रमा और शुक्र मध्यम अर्थात् अर्धवयस्क हैं; शनि, रवि, बृहस्पति और राहु ये वृद्ध अवस्थावाले हैं। इसका आशय यह है कि, जो ग्रह लग्नसे चतुर्थस्थानका स्वामी हो या चतुर्थ स्थानमें स्थित हो या देखता हो उस ग्रहकी अवस्था चौर आदिको कहना चाहिये ॥ ४१ ॥ भौममन्दाकंभोगीन्द्राः प्रकृत्या दुःखदा नृणाम् ॥ ज्ञगुरुश्वेतकिरणशुकाः सुखकराः सदा ॥ ४२ ॥ ___ सं० टी०-अथ ग्रहाणां प्रकृतिस्वरूपमाह-भौमेति । भौम. शनिसूर्यराहवः प्रकृत्या स्वभावेन लोकानां दुःखदायका भवंति क्रूरत्वादिति शेषः। बुधगुरुचन्द्रशुक्राः स्वभावेन सौख्यदायकाः स्युः। सौम्यप्रकृतित्वादिति भावः । एवं वस्तुज्ञाने च सर्वज्ञानम् ॥ ४२ ॥ इति ग्रहस्वरूपादिद्वारं पष्ठम् ॥ ६॥
अर्थ-अब ग्रहोंकी प्रकृति कहते *-मंगल, शनि, रवि, राहु ये क्रूर (पाप) ग्रह सर्वदा मनुष्योंको दुःख देनेवाले हैं और बुध, बृहस्पति, चन्द्रमा, शुक्र ये शुभग्रह होनेके कारण सर्वदा मनुष्योंको
"Aho Shrut Gyanam"