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________________ संस्कृतटीका-भाषाटीकासमेतः। (२९) अर्थ-अब नष्टवस्तुआदि किस स्थानमें है, इसको जाननेके लिये, दो श्लोक कहते हैं-शुक्र या चन्द्रमा लग्नमें स्थित हो या देखता हो तो नष्टवस्तु आदि जलमें जानना, बृहस्पति हो तो देवताका स्थान, रवि हो तो चतुष्पद (पशु) के रहनेका स्थान, बुध हो तो ईटसमूहोंका स्थान, मंगल हो तो दग्ध हुआ स्थान, शनि या राहु हो तो बाहरकी भूमि अर्थात् वन पर्वत आदि जाने । इन ग्रहों द्वारा चतुर्थ स्थानमें नष्ट वस्तुका विचार करना चाहिये । अर्थात् लग्नका स्वामी या अन्य कोई ग्रह चतुर्थ स्थानमें हो या देखता हो. तो उसी ग्रहके कथित स्थानमें नष्ट वस्तु है, ऐसा कहना चाहिये ॥ ३८॥३९॥ जीवमङ्गलमार्तण्डान्वदन्ति पुरुषान्बुधाः ॥ सोमसोमजमन्दाहिभृगुपुत्रांश्च योषितः॥४०॥ सं० टी०-अथ वस्तुस्थापकस्य ग्राहकस्य वा चौरादिज्ञानमाह-जीवेति । जीवभौमसूर्यास्त्रीनपि ग्रहान् बुधाः पुरुषान् एतेषां मध्ये एकोऽपि कश्चिल्लग्नस्थो वा पश्याति तदा पुरुषान् कथयंति दैवज्ञा इति शेषः । सोमश्चन्द्रः, सोमजो बुधः, मन्दः शनिः, अही राहुः, भृगुपुत्रः शुक्रस्तान् योषित्संज्ञकान् स्वीसंज्ञकान बुधा दैवज्ञा वदन्ति । अतस्तान् पदार्थान् स्त्रीहस्तांगीकृतानिति वदन्ति । एषां मध्ये एकोऽपि ग्रह इति शेषः ॥४०॥ "Aho Shrut Gyanam
SR No.009670
Book TitleBhuvandipak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBacchu Sharm
PublisherGangavishnu Shrikrushnadas
Publication Year1940
Total Pages138
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size4 MB
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