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संस्कृतटीका-भावाटीकासमेतः। (२३) चन्द्रमा और राहु सरीसृप ( सर्पादि ) संज्ञक हैं । तात्पर्य यह है कि, जीव ज्ञात होनेसे कौन जीव है, इसको जाननेके लिये जो ग्रह बली होकर लग्नको देखे या युक्त हो उसी ग्रहका कथित जीव कहना ॥ २९॥ विप्रो शुक्रगुरू शत्रौ कुजाकौ शूद्र इन्दुजः ।। इन्दुर्वैश्यः स्मृतौ म्लेच्छौ सैंहिकेयशनैश्चरौ३०॥
सं० टी०-अय जातिविशेषमाह-जातिः पञ्चधा प्रोक्ता विप्राविति । शुक्रबृहस्पती विप्रजाति वदतः । मंगलसूर्यो क्षत्रियजाति कथयतः। बुधः शूदजाति वदति । चन्द्रो वैश्यजातिम् । राहुशनी म्लेच्छजाती म्लेच्छेतरजातिश्चांडालादिरिति शेष इति भावः ॥ ३० ॥
- अर्थ-अब पूर्वकथितानुसार यदि द्विपद आवे तो जाति जाननेके लिये ग्रहोंकी जाति कहते हैं-शुक्र और बृहस्पति ब्राह्मण हैं, मंगल
और रवि क्षत्रिय हैं, बुध शूद्र है,चन्द्रमा वैश्य है, राहु और शनैश्चर म्लेच्छ कहे गये हैं । इसका आशय यह है कि, जो ग्रह बलवान् होकर लग्नको देखता हो या लग्नमें हो उस ग्रहका कहा हुआ जाति प्रश्नसंबन्धी द्विपदका कहना ॥ ३० ॥
"Aho Shrut Gyanam"