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________________ ( १६ ) भुवनदीपकः । चारिणौ । तथा राहुभौमशनैश्वरसूर्याः चत्वारोऽपि अरण्यचारिणः इति पण्डिता ब्रुवते ॥ २३ ॥ अर्थ- अब छठे द्वारमें मूक प्रश्नोत्तरके लिये ग्रहोंके स्थानस्वरूपादि कहते हैं - शुक्र और चन्द्रमा जलचारी हैं, बुध और बृहस्पति ग्रामचारी हैं तथा राहु, मङ्गल, शनि और रवि ये वनचारी हैं, ऐसा पंडित लोग कहते हैं । इसका तात्पर्य यह है कि, प्रश्न समय में जो ग्रह बलवान् होकर लग्नको देखे या युक्त हो तो उसको कथित स्थानसम्बन्धी वस्तु कहना । जैसे- शुक्र या चन्द्र बलवान् हो तो जल सम्बन्धी इत्यादि ॥ २३ ॥ प्रभातमिन्दुजगुरू मध्याह्न रविभूमिजौ ॥ अपराह्न भार्गवेन्द्र सन्ध्यां मन्दभुजङ्गमौ ॥ २४ ॥ सं० टी० - ग्रहाणां प्रभातादिकालज्ञानमाह - चिन्तायां कदा नष्टं कदा मूकमिति भावितप्रश्ने इन्दुजो बुधः, गुरुर्बृहस्पतिः सबलौ यदि लग्ने तदा प्रभातकालं कथयतः । तथा सूर्यभौमौ मध्याह्नकालं वदतः । तथा शुक्रचन्द्रो अपराह्नकालं तृतीयप्रहरं ज्ञापयतः । तथा शनैश्चरराहू संध्याकालं कथयतः । तथा मतान्तरे - "शनिराहुसुराचार्यै राश्यवस्थितमानतः । त्रिकाल - विषये कार्ये वर्षाकं ब्रुवते बुधाः ॥ २४ ॥ "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009670
Book TitleBhuvandipak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBacchu Sharm
PublisherGangavishnu Shrikrushnadas
Publication Year1940
Total Pages138
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size4 MB
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