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संस्कृतटीका-भाषाटीकासमेतः। (१११) __ यदि । हतो गदे जले शस्त्रे तस्य दोषः कुलोद्भवः ॥ १ ॥
चंद्रे देव्यो रवौ देवान्भौमे स्वकुलगोत्रजान् । बुधे विचित्रजनितो दोषः स्यात्कर्मसंभवः ॥ " इत्यादि ॥ १५८॥१५९ ॥ इति दोषज्ञानदारं चतुस्त्रिंशम् ॥ ३४ ॥ __ अर्थ-अब चौतीसवें द्वारमें दोषज्ञान लिखते हैं-यदि लग्न आठवें, बारहवें स्थानमें रवि, बारहवें और दशवेंमें मङ्गल, छठे, बारहवें. लग्न और आठवें भावमें चन्द्रमा. और शेष ( बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु ) ग्रह हों तो क्रमसे क्षेत्रपाल, आकाशदेवी, शाकिनी आदि वनदेवता, देवता जलदेवता, आत्म ( स्वकीय ) और प्रेतादिकोंका दोष क्रमसे जानना चाहिये । अर्थात् १-८-१२ में रवि हो तो क्षेत्रपालका दोष, १२-१० में मङ्गल हो तो आकाशदेवीका दोष, ६-१२-१-८ में चन्द्रमा हो तो शाकिनीदोष, १२-७ में बुध हो तो वनदेवता और इसी १२-७ में बृहस्पति हो तो देवता, शुक्र हो तो जलदेवता, शनि हो तो आत्मदोष, राहु हो तो प्रेतदोष जानना चाहिये ॥ १५८ ॥ ११९ ॥
__ इति दोषज्ञानद्वारम् ॥ ३४ ॥
यदीदुर्दिनचर्यायां शुभः स्यादुदयास्तयोः ॥ श्रेयास्तदाऽवगंतव्यं सकलोऽपि हि वासरः१६०॥
"Aho Shrut Gyanam"