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________________ संस्कृतटीका - भाषाटीकासमेतः । ( १०७ ) सं० टी० - लग्नपतिस्तथाऽष्टमस्थानाधिपतिर्याद उभावपि लग्ने स्यातां कथंभूतौ एकस्मिन्नेव द्रेष्काणे स्थितौ तदा रोगिणः पृच्छायां मूर्तिनीरोगेति वाच्यम् ॥ १५१ ॥ अर्थ - लग्नस्वामी और अष्टम भावके स्वामी ये द्रेष्काण में हों तो रोगप्रश्न में शरीर निरोग चाहिये ॥ १५१ ॥ दोनों लग्न में एकही होगा ऐसा कहना लग्नपो मृत्युपश्चापि मृत्यौ स्यातामुभौ यदि || स्थितोंद्रेष्काण एकस्मिस्तदामृत्युर्न संशयः १५२ सं० टी० - लग्नप इति | लग्नपो लग्नेशः मृत्युपोऽष्टमस्थानाधिपः एतावुभौ प्रश्नलग्नादष्टमस्थानगतौ एकद्रेष्काणस्थितौं यदि भवतस्तदा रोगिणो मृत्युर्वाच्यः अत्र संशयो न, बुधैरिति शेषः ॥ १५२ ॥ अर्थ - यदि लग्नस्वामी और अष्टम भावके स्वामी ये दोनों अष्टमभावमें स्थित हों और एकही द्रेष्काण में हों तो अवश्य मृत्यु होती है इसमें सन्देह नहीं ॥ १५२ ॥ लग्नपो लाभपश्चापि लाभे स्यातामुभौ यदि || स्थितौद्रेष्काणएकस्मिन्प्रष्टुभस्तदाध्रुवम् १५३ "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009670
Book TitleBhuvandipak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBacchu Sharm
PublisherGangavishnu Shrikrushnadas
Publication Year1940
Total Pages138
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size4 MB
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