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संस्कृतटाका-भाषाटीकासमेतः (९१) ऐसे प्रश्नलग्नका स्वामी क्रेता ( खरीदनेवाला) और ग्यारहवें भावका स्वामी विक्रेता ('बेचनेवाला ) कहा गया है ॥ १२७॥ बलशालि विलग्नं चेद्गृह्यते यत्क्रयाणकम् ॥ तस्मात्तयाणकाल्लाभःप्रष्टुर्भवति निश्चितम् १२८ ___ सं० टी०-तस्मिल्लग्नाधिपतियदि लग्नं पूर्णया दृष्टया पश्यति यल्लग्नमिति हेतोरुच्यते । त्वया पृष्टं वस्तुं ग्राह्यं तस्मात्क्रयाणकात्पष्टुलाभो निश्चयेन भविष्यति अत्र यादृशो लग्नाधिपतिरुच्यते उदितो मित्रक्षेत्री वर्गोत्तमश्च यावतीः विंशोपका लग्न पश्यात तावविंशोपकालाभो भविष्यति इति भावार्थः ॥ १२८॥ ___ अर्थ-यदि लग्नका स्वामी लग्नको पूंण दृष्टिसे देखता हो तो उस वस्तुको खरीदनेसे प्रश्नकर्ताको निश्चय लाभ होता है परन्तु यहाँ विशेष यह है कि लग्नका स्वामी यादृश उदित, स्वक्षेत्र, मित्रक्षेत्र, वर्गोत्तम आदिमें स्थित होकर लग्नको जितनी दृष्टि से देखता हो उतना ही लाभ होता है अर्थात् एक चरण दृष्टिसे देखता हो तो सवाया लाभ, दो चरण दृष्टि से देखता हो तो ड्योढा इत्यादि ॥ १२८ ॥ विक्रीणाम्यमुकं वस्तु प्रश्श्रेऽप्येवंविधे सति ॥ आयस्थाने बलवति विक्रेतव्यं क्रयाणकम् १२९
"Aho Shrut Gyanam"