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________________ संस्कृतटीका - भाषाटीकासमेतः । ( ८९ ) अर्थ - इसी प्रकार अन्य जो चोरी करना, विवाद करना, शत्रुको मारना, युद्ध करना इत्यादि योग में भी लग्नमें पापग्रहके नहीं रहने से विचारकर कहना चाहिये और चौरप्रश्न में यदि लग्नमें शुभग्रह हो तो चोरीसे धन नहीं मिले किन्तु केवल अन्य कोई शुभ फल प्राप्त हो, और लग्न में शुभयोग प्रभावसे शरीर में कुशलता रहे || १२३ ॥ १२४ ॥ रणे चौर्यादिहनने धातुवादादिकर्मसु ॥ क्रूराक्रूर समायोगान्मूर्तावेव विचार्यते ॥ १२५ ॥ सं०टी० - एतेषु रणचौर्यादिकार्येषु मूर्तिरेव विचारणीया । यदि प्रश्नकाले मूर्ती क्रूरग्रहः स्यात्तदा शोभनः । यदा सौम्य - स्तदा न शोभनः । क्रूराक्रूर विचारेण तादृशमेव फलं वक्तव्यमित्यर्थः ॥ १२५ ॥ अर्थ-युद्ध में, चोरी में, शत्रुको दमन करनेमें और धातुवादादि कर्ममें लग्न में पापग्रह और शुभ ग्रहके योगसे फलका विचार किय जाता है अर्थात् पूर्वोक्त कार्यों में लग्नमें पापग्रह शुभदायक होता है और शुभग्रह अशुभ करता है ॥ १२५ ॥ i मूत क्रूरग्रहः श्रेया छ्रेयसी क्रूरह न हि ॥ शुभो न शोभनो मूर्ती शुभदृष्टिस्तु शोभना १२६ "Aho Shrut Gyanam"
SR No.009670
Book TitleBhuvandipak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBacchu Sharm
PublisherGangavishnu Shrikrushnadas
Publication Year1940
Total Pages138
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size4 MB
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