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अध्याय - ७
परविवाहकरणेत्वरिकापरिगृहीताऽपरिगृहीतागमनानंगक्रीड़ाकामतीव्राभिनिवेशाः ॥२८॥
दूसरे के पुत्र-पुत्रियों का विवाह करना - कराना, पति-सहित व्यभिचारिणी स्त्रियों के पास आना-जाना, लेन-देन रखना, रागभाव पूर्वक बात-चीत करना, पति - रहित व्यभिचारिणी स्त्री ( वेश्यादि) के यहाँ आना-जाना, लेन-देन आदि का व्यवहार रखना, अनंगक्रीड़ा अर्थात् कामसेवन के लिये निश्चित अंगों को छोड़कर अन्य अंगों से कामसेवन करना और कामसेवन की तीव्र अभिलाषा - ये पाँच ब्रह्मचर्या व्रत के अतिचार हैं।
Bringing about marriage, intercourse with an unchaste married woman, cohabitation with a harlot, perverted sexual practices, and excessive sexual passion.
क्षेत्रवास्तुहिरण्यसुवर्णधनधान्यदासीदासकुप्यप्रमाणातिक्रमाः ॥२९॥
[ क्षेत्रवास्तुप्रमाणातिक्रमाः ] क्षेत्र और रहने के स्थान के परिमाण का उल्लंघन करना, [ हिरण्यसुवर्णप्रमाणातिक्रमाः ] चाँदी और सोने के परिमाण का उल्लंघन करना, [ धनधान्यप्रमाणातिक्रमा: ] धन ( पशु आदि) तथा धान्य के
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