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पुस्तक लिखने की प्रेरणा
युवाचार्य श्री महाश्रमणजी के सानिध्य में उपासक श्रेणी में अध्ययन कर मुझे उपासक बनने का मौका मिला, यह मेरा परम सौभाग्य है। संयोगवश मुझे अमेरिका के सिनसिनाटी शहर के जैन सेंटर में मुझे पर्युषण करवाने का अवसर मिला। अनेक भाईबहनों ने मुझे सामायिक के बारे में पूछा। उनके पास कई प्रेरणा स्त्रोत साहित्य तो है लेकिन ४८मिनट के कालान्तर दरम्यान में क्या-क्या करना चाहिए? इसकी कुछ विशेष जानकारी नहीं थी। उस समय से मुझे ऐसा अहसास होने लगा कि मुझे जैनधर्म का गहराई से अध्ययन करना चाहिए।
"जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय" एक अनुपम उपहार है। गुरुदेव श्री तुलसी एवं आचार्य श्री महाप्रज्ञजी की दूरदृष्टि का फल है, जो हमारे जैसे अध्ययन करने वालों के लिए एक वरदान है। जीवन विज्ञान और प्रेक्षाध्यान में एम.ए, करने के बाद मैने फिर जैन विद्या में एम.ए. किया।जैन धर्म का धीरे-धीरे और व्यवस्थित ज्ञान प्राप्त होने लगा। तभी मैंने निश्चित किया कि “सामायिक पर अभ्यास करूंगी।"
आचार्य श्री महाप्रज्ञजी द्वारा लिखित एक-एक पुस्तक ज्ञान का भंडार है। एक-एक शब्द ज्ञान से ओतप्रोत है। “आध्यात्म का प्रथम सोपान - सामायिक' पुस्तक में सामायिक के विषय में बहुत ही सहज भाषा में जानकारी दी गई है। गुरुदेव श्री तुलसी द्वारा अभिनव सामायिक एक प्रायोगिक रुप है। रोज सामायिक के अनेक प्रयोग करने के बाद मुझे सामायिक और प्रिय लगने लगी।
मैंने ४८ मिनट की सामायिक काल का एक सम्पूर्ण कार्यक्रम बनाया। अमेरिका में रहने वाले सामायिक साधकों की रुचि को मद्देनजर रखते हुए और उन्हें प्रेक्षाध्यान की
जानकारी देने के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए, इस ४८ मिनट के कालान्तर का एक व्यवस्थित कार्यक्रम प्रस्तुत करने की मेरी इच्छा हुई। यह मेरा स्वयं का अभ्यास और प्रयोग है।सामायिक की विस्तृत जानकारी के लिए मैंने अनेक पुस्तकें पढ़ी।
हाल ही में प्रकाशित 'युवादृष्टि का 'सामायिक - समता की साधना' अंक, जिसमें आचार्यप्रवर, युवाचार्यश्री, साध्वी प्रमुखाश्री कनकप्रभाजी, साधू-साध्वियों और समणियों एवं अनेक श्रावकों के लेख हैं, उनको मैंने पढ़ा। काफी लम्बे अभ्यास के बाद मैंने "बनें अहम्' के माध्यम से आपके सामने एक संकलन प्रस्तुत करने की कोशिश की है। कुछ सामग्री मैंने जिन पुस्तकों से ली है उनके नाम इस प्रकार है - एसो पंच णम्मोकारो - आचार्यश्री महाप्रज्ञजी, ज्ञानकिरण, नमस्कार महामंत्र साधना के आलोक में - साध्वी राजीमतीजी, नमस्कार महामंत्र की प्रभावक कथाएं - मुनि किशनलालजी, णमोकार महामंत्र - स्व. श्री गणेशमलजी दुगड़, अमृत कलश और ऐसी अनेक साधू-साध्वियों की विविध पुस्तकें पढ़ी। जैसे "बनें अर्हम्” पुस्तक के नीचे जो भी श्लोक लिखे हैं सभी युवाचार्यश्री महाश्रमणजी की “शिक्षा सुधा" पुस्तक से लिए हैं। बहुत ही सुंदर, अर्थपूर्ण और ज्ञान से ओतप्रोत श्लोक आप पढ़ेंगे तो, संस्कृत में इतनी सरलता से इतना ज्ञान प्राप्त कर निश्चित ही नतमस्तक हो जाएंगे। ___ मैं जब जैन धर्म में एम.ए. कर रही थी, तभी मैंने बहुत नोट्स निकाले थे, मैं हमेशा लेक्चर देने जाती हूँ, तब भी मैं नोट्स निकालती हूँ। उस समय मैंने पुस्तक के नाम, लेखक और पुस्तक के पृष्ठ लिखे नहीं। पुस्तक लिखते समय मुझे यह बात सीखने को मिली कि, जब भी मैं नोट्स लिलूँगी तो लेखक, पुस्तक का नाम, पृष्ठ संख्या, पढ़ने की दिनांक सब कुछ जरूर लिखूगी। इसी कारण इस पुस्तक में ज्ञात-अज्ञात जिनकी भी पुस्तकों से मैंने संकलन किया है उन सभी की तहे दिल से क्षमा माँगती हूँ और धन्यवाद देती हूँ।
इस पुस्तक लिखने की प्रेरणा से पुस्तक तैयार होने तक अनेक व्यक्तियों ने मार्गदर्शन और मदद की। अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मंडल अध्यक्षा कनक बरमेचा, सदस्या पूनम और मधु हमेशा साथ देते हैं। शांताजी पुगलिया जब से मिली, तभी से आज तक हमेशा प्रेरणा देती है। बचूबेन झवेरी, भारतीबेन सभी ने पुस्तक लिखने के लिए मुझे प्रोत्साहित किया।