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माँसा के बारे में... मैं भाग्यवान हूँ जो ऐसी पुण्यात्मा की बेटी बनने का सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ। हमारे धर्मनिष्ठ और श्रद्धानिष्ठ परिवार में हमारी माताजी तो एक अत्यंत श्रमशील, गृहकुशल और कलाप्रेमी थी।
उनके बारे में शब्दों में कुछ लिखना मेरे लिए बहुत मुश्किल है।माताजी की साधू साध्वियों की सेवा, दान देने की उदार भावना मुझे हमेशा याद आती है। सबको स्नेह देने तथा सबको जोड़कर रखने की कला उनमें अटूट थी। ___ माताजी सदैव स्वाध्याय करती थी। उन्हें कितने थोकडे, प्रतिक्रमण, झीनी चर्चा, तेराद्वार और बहुत कुछ कण्ठस्थ था। सहज, शांत स्वभाव और जीवन में सहजता थी। उनमें वैराग्य की भावना हमने हमेशा देखी थी। हमारे परिवार की आर्थिक परिस्थिति साधारण थी। उन्होंने कलात्मक, संस्कारक्षम और संयममय जीवन जिया और हमारे पर भी ऐसे संस्कार स्थापित किए।
शारीरिक कमजोरी के बावजूद भी उनका मनोबल बहुत दृढ़ था, तपस्या भी करती थी। त्याग, पचखाण तो हमेशा करती रहती थी। सामायिक बिना कभी मंजन भी नहीं करती थी और सचित का त्याग रखती थी।
उनके संस्कार, वैराग्य और त्याग की भावना के फलस्वरूप ही उन्होंने दो बेटियों को धर्मसंघ में दीक्षित किया। मेरे और दीपचंद (मेरा भाई) पर अच्छे धार्मिक संस्कार स्थापित किए। उनका जीवन ही हमारे लिए संदेश था। उनके संथारा ने तो मन पर ऐसी छाप छोड़ी जो कभी भूली नहीं जाएगी।
मेरी भाभीजी सामायिक पर पुस्तक लिख रही है और यही कारण है कि माताजी की यादें उजागर हो रही है। हम सब सामायिक की पुस्तक के लिए शुभकामनाएं प्रेषित करते हैं।
शुभकामनाएं अध्यात्म का प्रथम सोपान है 'सामायिक' । जैन दर्शन में आत्मा को केंद्र में रखकर उसकी निर्मलता को प्रमुखता दी गई। आगमों में कहा भी गया है 'आत्मशुद्धि का साधन धर्म है। आत्मशुद्धि के लिये किये गये उपायों में सर्वश्रेष्ठ है 'सामायिक' । 'सामायिक' आत्मा का पर्यायवाची है। आगमों में सामायिक को संवर, संयम, भाव, जीव आदि कई नामों से उपमित किया है।
श्रीमती अलकाजी सांखला आध्यात्म प्रिय एवं प्रबुद्ध महिला हैं। गुरुदेव तुलसी के प्रति आपकी अनन्य श्रद्धा एवं भक्ति तथा आचार्यश्री महाप्रज्ञजी के प्रति आपका अनन्य समर्पण आपको एक विशिष्ट कार्यकर्ता की छबि दे रहा है। आप अणुव्रत जीवन विज्ञान एवं महिला मंडल के कार्यों से सघनता से जुड़ी है। विदेश में बसे सधार्मिक बन्धुओं से आपका विशेष संपर्क रहता है तथा कई बार आपका उनसे मिलना होता है। उनकी धार्मिक वृत्ति को देखते हुए आपने सामायिक की गहन जानकारी के साथ अभिनव सामायिक का जो संकलन किया है वह प्रशंसनीय है। आपने इस पुस्तक में गहरी आगमिक जानकारी पाठकों को देने का प्रयास किया है। आचार्यश्री महाप्रज्ञजी एवं युवाचार्यश्री महाश्रमणजी के सामायिक से संबंधित सुंदर-सुंदर उवाच भी आपने इसमें संकलित किये हैं, आप साधूवाद के पात्र हैं। __ मैं अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मंडल की तरफ से यह शुभकामना करती हूँ कि आपकी यह पुस्तक सामायिक प्रेमियों के लिये बहुत उपयोगी साबित होगी। कम अध्ययन में बहुत सारी जानकारी इस पुस्तक से प्राप्त कर सकेंगे। आपकी यह पुस्तक सभी के लिये आत्मशुद्धि का साधन बने। उनकी चेतना को परिष्कृत करती रहे तथा आपका भी आध्यात्मिक विकास बढ़ता रहे। अंत में आपकी यह पुस्तक गुरुदेव तुलसी के भावों का मूर्तरुप साकार हो
"धर्म है समता विषमता पाप का आधार है जैन शासन के निरुपण का यही बस सार है।"
शुभकामना के साथ
नवसारी। दि. 19-03-2010
- कंचन देवी बैद
सूरत दि. 19-03-2010
- कनक बरमेचा अखिल भारतीय महिला मंडल अध्यक्ष