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मंगल भगवान् वीरो, मंगलं गौतमो गणी । मंगलं स्थूलभद्रायाः जैनधर्मोऽस्तु मंगलम् ॥ ३. सर्व मंगल मांगल्यं, सर्व-कल्याणकारणम् । प्रधानं सर्वधर्माणां, जैनं जयतु शासनम् ॥
१.
U. सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः । सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद् दुःखभाग्भवेत् ॥
प्रेक्षाध्यान पर प्रयोग पद्धति :
ध्यान की पूर्व तैयारी - सावधान, ध्यान के लिए तैयार हो जाएं।
ध्यानासन -
ब्रह्म-मुद्रा
ज्ञान-मुद्रा
जिस आसन में लम्बे समय तक सुविधापूर्वक स्थिरता से बैठ सकें, उस ध्यानासन का चुनाव करें, जैसे- पद्मासन, अर्धपद्मासन, सुखासन या वज्रासन ।
किसी एक मुद्रा (ब्रह्म- मुद्रा या ज्ञान-मुद्रा) का चुनाव करें दोनों हथेलियों को नाभि के नीचे स्थापित करें। बायीं हथेली नीचे और दायीं ऊपर रहे। (अथवा )
दोनों हाथों को घुटनों पर टिकायें। अंगूठे और तर्जनी के अग्र
भागों को मिलायें। शेष तीनों अंगुलियां सीधी रहे।
आँखों को बिना दबाव दिये, कोमलता से बंद करें।
अर्हम् की ध्वनि - प्रारंभ में अर्हम् की नौ बार ध्वनि करें।
अर्हम्-ध्वनि की विधि - पहले पूरा श्वास भरकर उसे धीरे-धीरे छोड़ते समय अर्हम् का उच्चारण इस प्रकार करें 'अ' कार का उच्चारण करते समय चित्त नाभि पर केन्द्रित करें, ( समय २ सेकण्ड ) 'हे' का उच्चारण करते समय चित्त को आनन्दकेन्द्र (हृदय) पर केन्द्रित करें। (समय ४ सेकण्ड ) 'म्' की ध्वनि करते समय चित्त को विशुद्धि केन्द्र (गले) तक ले जाएँ, ( समय ६ सेकण्ड ) । अन्तिम नाद के समय चित्त को ज्ञान केन्द्र (मस्तष्क) पर टिकाएं (समय १ सेकण्ड ) एक सेकण्ड का समय प्रारंभ में नाद के लिए रहे।
बनें अर्हम्
स्वाध्यायः पंचधा प्रोक्तः, वाचना प्रच्छना तथा । सुपरिवर्तना वर्या, स्तनुप्रेक्षा कथाऽपि च ॥
५४.
ध्येय-सूत्र :
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'संपिक्खए अपगमप्पएणं' का उच्चारण तीन बार करें।
आत्मा के द्वारा आत्मा को देखें। स्वयं को देखें।
अपने आपको देखने के लिए ही प्रेक्षाध्यान का अभ्यास करें।
ध्यान का संकल्प - मैं चित्त-शुद्धि के लिए प्रेक्षा-ध्यान का प्रयोग कर रहा हूँ। (तीन बार दोहराएं)
ध्यान का पहला चरण - कायोत्सर्ग
शरीर को स्थिर, शिथिल और तनाव मुक्त करें। मेरूदंड और गर्दन सीधी रहे। अकड़न न हो। मांस पेशियों को ढीला छोड़ें। शरीर की पकड़ को छोड़ें। पाँच मिनट तक काय गुप्ति का अभ्यास करें। प्रतिमा की भांति शरीर को स्थिर रखें। हलन चलन न करें। पाँच मिनट तक पूरी स्थिरता रखें।
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कायोत्सर्ग के दो अर्थ हैं शरीर का शिथिलिकरण और अपने प्रति जागरुकता। प्रत्येक अवयव के प्रति जागरुक बनें। पूरे भाग में चित्त की यात्रा करें। शिथिलता का सुझाव दें और उसका अनुभव करें। प्रत्येक मांस पेशी और प्रत्येक स्नायु शिथिल हो जाये। इस प्रकार पूरे शरीर की शिथिलता को साधें। गहरी एकाग्रता, पूरी जागरुकता ही कायोत्सर्ग है ।
बने अर्हम्
मंगल संकल्प
मैं चैतन्यमय हूँ, मैं शक्तिमय हूँ, मैं आनंदमय हूँ
मेरे भीतर अनन्त चैतन्य का, अनन्त शक्ति का, अनन्त आनंद का सागर लहरा रहा है, इसका साक्षात्कार करना ही मेरे जीवन का लक्ष्य है।
स्वाध्याय के पांच प्रकार है वाचला. पृच्छना, परिवर्तना, सुपेक्षा और धर्मकथा
५५.