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________________ श्रीमद्राजचन्द्रजैनशास्त्रमालायां जिनभद्रगणि-जिनभद्रगणि श्वेताम्बर सम्प्रदायमें क्षमाश्रमण और भाष्यकारके नामसे प्रसिद्ध हैं। ये जैन आगमोंके आचार्य महान सैद्धांतिक विद्वान गिने जाते हैं । जिनभद्रगणिने विशेषावश्यकभाष्य, विशेषणवती, जीतकल्प आदि ग्रन्थोंकी रचना की है। समय ईसवी सन्की पांचवीं शताब्दि । गन्धहस्ति सिद्धसेनगणि-पूर्वकालमें सिद्धसेन दिवाकरको उमास्वातिके तत्त्वार्थसूत्रके टीकाकार मानकर सिद्धसेन दिवाकरको ही गन्धहस्ति कहा जाता था । परन्तु अब यह निश्चित हो गया है कि गंधहस्ति तत्त्वार्थभाष्य बहवृत्ति रचनेवाले भास्वामिके शिष्य सिद्धसेनगणिका ही विशेषण है। तत्त्वार्थभाष्यकी यह वृत्ति भाष्यमहोदधिके नामसे भी प्रसिद्ध है । सिद्धसेनगणि जैन सिद्धांतशास्त्रके महान विद्वान थे । सिद्धसेनगणि तत्त्वार्थभाष्य वृत्ति लिखते समय उमास्वातिके आगम-विरुद्ध मंतव्योंपर टीका करते हुए उमास्वातिका सूत्रा नभिज्ञ, प्रमत्त आदि शब्दोंसे उल्लेख करते हैं । समय विक्रमकी सातवीं और नौवीं शताब्दीका मध्य । हरिभद्रसूरि-श्वेताम्बर सम्प्रदायके महान प्रतिष्ठित उदार विद्वान गिने जाते हैं। इन्होंने षड्दर्शनसमुच्चय, अनेकांतजयपताका, शास्त्रवार्तासमुच्चय, धर्मसंग्रहणी, पंचवस्तुक, अष्टक आदि अनेक ग्रंथोंकोरचना की है। हरिभद्र बुद्ध, कपिल, पतंजलि और व्यास आदि जैनेतर उन्नायकोंके प्रति भगवान, सर्वव्याधिभिषग्वर, महामुनि और महर्षि आदि शब्दोंका प्रयोग कर सम्मान प्रदर्शित करते हैं । हरिभद्र नामके अनेक जैन विद्वान हो गये हैं। प्रस्तुत याकिनोसूनु हरिभद्रका समय ईसाकी आठवीं शताब्दी । विद्यानन्द-इनको विद्यानन्दि अथवा पात्रकेसरि भी कहा जाता है। विद्यानन्द अपने समयके महान तार्किक दिगम्बर विद्वान् थे। इन्होंने तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक, अष्टसहस्री, आप्तपरीक्षा, पत्रपरीक्षा आदि ग्रंथोंकी रचना की है। विद्यानन्दने मीमांसकोंके द्वारा जैनदर्शनपर किये जानेवाले आक्षेपोंका बहुत विद्वत्तापूर्ण उत्तर दिया है। न्यायकुमुदचन्द्रोदय-इस ग्रंथके कर्ता दिगम्बर विद्वान प्रभाचन्द्र आचार्य है। यह ग्रंथ माणिकचन्द्र दिगम्बर जैन ग्रन्थमालकी ओरसे प्रकाशित हुआ है। प्रभाचन्द्रने माणिक्यनन्दिके परीक्षामुखसूत्रपर प्रमेयकमलमार्तण्ड आदि ग्रन्थोंकी रचना की है । समय ई. स. १० वीं शताब्दी। पंचलिंगीकार-कथाकोप प्रकरणके रचयिता जिनेश्वरसूरिने पंचलिंगी प्रकरण ग्रंथकी रचना की है। समय विक्रम ११०८ संधत् । वादिदेव-वादिदेवसूरि वादशक्तिमें अद्वितीय माने जाते थे । इन्होंने कुमुदचन्द्र नामक दिगम्बर विद्वानसे शास्त्रार्थ किया था। वादिदेवने प्रमाणनयतत्त्वालोकालंकार और उसकी टीका स्याद्वादरत्नाकर आदि ग्रंथोंकी रचना की है। समय ईसवी सन्की १२ वीं सदी। हेमचन्द्र-हेमचन्द्राचार्य १२ वीं सदीके एक महान प्रतिभाशाली श्वेताम्बर आचार्य हो गये हैं। हेमचन्द्र कलिकालसर्वज्ञके नामसे प्रसिद्ध थे। इन्होंने न्याय, व्याकरण, साहित्य, दर्शन, छन्द, योग आदि विविध विषयोंपर अनेक शास्त्रोंकी रचना की है। इनमें योगशास्त्र, हैमशाब्दानुशासन, हैमव्याकरण, अनेकाथसंग्रह, प्रमाणमीमांसा आदि उल्लेखनीय हैं। द्रव्यालंकार-रामचन्द्र और गुणचन्द्रने स्वपज्ञवृत्ति सहित द्रव्यालंकारकी रचना की है। रामचन्द्र और गुणचन्द्र दोनों हेमचन्द्राचार्यके शिष्य थे। समयसागर? २ बौद्ध-- दिङ्नाग-दिङ्नाग विज्ञानवादके प्रतिपादक महान ताकिक बौद्ध विद्वान ही गये हैं। इन्होंने न्यायप्रवेश,प्रमाणसमुच्चय आदि बौद्ध न्यायसम्बन्धी अनेक ग्रंथोंकी रचना की है। समय ईसवी सन्की पांचवीं शताब्दि। न्यायबिंदु-इसके कर्ता धर्मकीर्ति आचार्य हैं। समय ईसवी सन् ६३५ ।
SR No.009653
Book TitleSyadvada Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1970
Total Pages454
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size193 MB
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