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न्याय-वैशेषिक परिशिष्ट ( ग ) ( श्लोक ४ से १० तक ) न्याय-वैशेषिकदर्शन
( १ ) न्याय दर्शन के मूल प्रवर्तक अक्षपाद गौतम कहे जाते हैं । अक्षपादको महायोगी, अहल्यापति आदि नामोंसे भी कहा गया है' । पुराणों के अनुसार स्वमतदूषक व्यास ऋषिका मुख देखने के लिए गौतम के पैरोंमें नेत्र थे, इसलिए इनका नाम अक्षपाद पड़ा । प्राचीन मान्यता के अनुसार, गौतम ऋषिके आश्रम में वृष्टि के न होनेपर भी वरुणके वरसे वृक्ष आदि वनस्पतियाँ सदा हरी भरी रहा करती थीं । नैयायिक योग; और शैव नामसे भी कहे जाते हैं । नैयायिक दर्शनमें शिव भगवान जगतकी सृष्टि और संहार करते हैं; वे व्यापक, नित्य, एक और सर्वज्ञ हैं, और इनकी बुद्धि शाश्वती रहती है । नैयायिक लोग प्रमाण, प्रमेय संशय, प्रयोजन, दृष्टांत, सिद्धांत, अवयव, तर्क, निर्णय, वाद, जल्प, वितंडा, हेत्वाभास, छल, जाति और निग्रहस्थान इन सोलह तत्त्वोंके ज्ञानसे दुखका नाश होनेपर मुक्ति स्वीकार करते हैं । ये लोग प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान, और आगम इन चार प्रमाणोंको मानते हैं । 3 ( २ ) वैशेषिक दर्शनके आद्यप्रणेता कणाद कहे जाते हैं । कणादको कणभक्ष अथवा ओलूक्य नामसे भी कहा गया है। पौराणिक मान्यता के अनुसार, कणाद ऋषि रास्ते में पड़े हुए चावलोंके कणोंका आहार थे, अतएव इनका नाम कणाद अथवा कणभक्ष पड़ा । कणादने
१. अक्षपादो महायोगी गौतमाख्योऽभवन्मुनिः । गोदावरीसमानेता अहल्यायाः पतिः प्रभुः ॥
स्कन्दपुराण, कुमारिकाखण्ड |
करके कपोती वृत्तिसे अपना निर्वाह करते काश्यपगोत्री उलूक ऋषिके घर जन्म
२. पुराणों में सांख्य योगकी तरह अक्षपाद और कणादप्रणीत शास्त्रोंको श्रुतिविरुद्ध कहा हैअक्षपादप्रणीते च काणादे योगसांख्ययोः ।
त्याज्यः श्रुतिविरुद्धोऽर्थः । पद्मपुराण; न्यायकोश पृ. २ ।
३. न्याय ग्रन्थों में प्रमाणके लक्षण निम्न प्रकारसे मिलते हैं---
( क ) जिस प्रत्यक्ष आदिके द्वारा प्रमाता पदार्थोंको यथार्थ रूपसे जानता है, उसे प्रमाण कहते हैं-प्रमाता येनार्थं प्रमिणोति तत् प्रमाणम् । वात्स्यायनभाष्य १-१-१ |
( ख ) जो ज्ञानमें कारण हो, उसे प्रमाण कहते हैं -- उपलब्धिहेतुः प्रमाणम् । उद्योतकर, न्यायवार्तिक ।
( ग ) अव्यभिचारी और असंदिग्ध रूपसे पदार्थों के ज्ञान करनेवाली वोघावोध स्वभाववाली सामग्रीको प्रमाण कहते हैं -- अव्यभिचारिणीमसंदिग्धार्थोपलब्धिम् विदघति वोधाबोधस्वभावा सामग्री प्रमाणम् । जयन्त, न्यायमंजरी पृ. १२ ।
(घ) पदार्थोके यथार्थ रूपसे जाननेको प्रमा और प्रमाके साधनको प्रमाण कहते हैं -- यथार्थानुभवः प्रमा । तत्साधनं च प्रमाणम् । उदयन, तात्पर्य परिशुद्धि |
(ङ) प्रमासे नित्य संबंध रखनेवाले परमेश्वरको प्रमाण कहते हैं--साधनाश्रयव्यतिरिक्तत्वे सति प्रमाव्याप्तं प्रमाणम् । सर्वदर्शनसंग्रह, अक्षपाददर्शन ।
४. मुनिविशेषस्य कापोतीं वृत्तिमनुष्ठितवतो रथ्यानिपतितांस्तण्डुलकणानादाय कृताहारस्याहारनिमित्तात् कणाद इति संज्ञाऽजनि । पड्दर्शनसमुच्चय, गुणरत्नटीका, पृ. १०७ ।