________________
३१८
श्रीमद्राजचन्द्रजैनशास्त्रमालायां
बौद्धोंका कथन है कि जिस प्रकार एक दीपक से दूसरे दीपक जलाये जानेपर पहला दीपक दूसरे दीपकके रूपमें नहीं बदल जाता, अथवा जिस प्रकार गुरुके शिष्यको विद्या दान करनेपर गुरुका सिखाया हुआ श्लोक शिष्य के सोखे हुए श्लोकमें नहीं परिणत होता, उसी प्रकार बिना किसी नित्य पदार्थके माने विज्ञानसन्ततिके द्वारा भवपरम्परा चलती है। जिस समय जीवकी मृत्यु होती है, उस समय मरनेके समयमें रहनेवाला विज्ञान संस्कारोंकी दृढ़तासे गर्भ में प्रविष्ट होकर फिरसे दूसरे नाम-रूपसे संबद्ध हो जाता है। अतएव एक विज्ञानका मरण और दूसरे विज्ञान का जन्म होता है। जिस प्रकार ध्वनि और प्रतिध्वनिमें, मुहर और उसकी छापमें, पदार्थ और पदार्थ के प्रतिविम्बमें कार्य-कारण संबंध है, उसी तरह एक विज्ञान
और दूसरे विज्ञानमें कार्य-कारण संबंध है। विज्ञान कोई नित्य वस्तु नहीं है। इस विज्ञानको परम्परासे दूसरे भवमें जो मनुष्य उत्पन्न होता है, उस मनुष्यको न पहला ही मनुष्य कह सकते हैं, और न उसे पहले मनुष्यसे भिन्न ही कहा जा सकता है। अतएव जिस प्रकार कपासके बीजको लाल रंगसे रंग देनेसे उस बीजका फल भी लाल रंगका उत्पन्न होता है, उसी तरह तीव्र संस्कारोंकी छापके कारण अविच्छिन्न संतानसे यह मनुष्य दूसरे भवमें भी अपने किये हुए कर्मोके फलको भोगता है। इसलिये जिस प्रकार डाकुओंसे हत्या किये जाते हुए मनुष्यके टेलीफोन द्वारा पुलिसके थाने में खबर देनेसे मनुष्यके अंतिम वाक्योंसे मरनेके पश्चात् भी मनुष्यको क्रियायें जारी रहती है, उसी तरह संस्कारको दृढ़ताके बलसे मरनेके अंतिम चित्त-क्षणका जन्म लेनेके पूर्व-क्षणके साथ संबंध होता है। वास्तवमें आत्माका पुनर्जन्म नहीं होता, किन्तु जिस समय कर्म ( संस्कार ) अविद्या से संबद्ध होता है, उस समय कर्मका पुनर्जन्म कहा जाता है। इसीलिये बौद्ध दर्शनमें कर्मको छोड़कर चेतना अलग वस्तु नहीं है।
बौद्ध साहित्यमें आत्मासंबंधी मान्यतायें बौद्ध साहित्यमें आत्माके संबंधमें भिन्न-भिन्न मान्यतायें उपलब्ध होती हैं। संक्षेपमें इन मान्यताओंको हम चार विभागोंमें विभक्त कर सकते हैं। (१) मिलिन्दपण्ह आदि ग्रंथोंके अनुसार पांच स्कंधोंको छोड़कर आत्मा कोई पृथक् पदार्थ नहीं है। इसलिये पंच स्कंधोंके समूहको ही आत्मा कहना चाहिये। (२) पांच स्कंधों के अतिरिक्त नैयायिक आदि मतोंकी तरह आत्मा पृथक् पदार्थ है। (३) आत्माका अस्तित्व
१. मिलिन्दपण्ह अध्याय २, पृ. ४०-५० । स्पष्टीकरणके लिये देखिये बोधिचर्यावतार ९-७३ की पंजिका;
तत्त्वसंग्रह, कर्मफलसंबंधपरोक्षा तथा लोकायतपरीक्षा नामक प्रकरण ।
२. मिसेज़ राइस डैविड्स, Buddhist Psychology, पृ. २५ । ३. देखिये वारैन ( Warren ) की Buddhism in Translation पुस्तकका Rebirth and not
Transmigration नामक अध्याय, पृ. २३४-२४१ । ४. (क) चेतनाहं भिक्खवे कम्मति वदामि । अंगुत्तरनिकाय ३-४५ । (ख) सत्वलोकमथ भाजनलोकं चित्तमेव रचयत्यतिचित्र । कर्मजं हि जगदुक्तमशेषं कर्मचित्तमवधूय न चास्ति । बोधिचर्यावतारपंजिका, पृ. ४७२ । (ग) कम्मा विपाका वत्तन्ति विपाको कम्मसंभवो ।
कम्मा पुनब्भवा होंति एवं लोको पवत्तति ।। कम्मस्स कारको नत्थि विपाकस्स च वेदको। सुद्धधम्मा पवत्तन्ति एवेतं सम्मदस्सनं ॥
विसुद्धिमग्ग, अध्याय १९ ।