SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 216
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रीमद्राजचन्द्रजेनशास्त्रमालायां [अन्य. यो. व्य. श्लोक १६ आकाश-चन्द्रके आकारका होनेपर भी जल-चन्द्रसे आकाश-चन्द्रका ज्ञान नहीं होता। (ग) यदि प्रमाण और प्रमिति सर्वथा अभिन्न होते, तो आप लोग सारूप्यको प्रमाण और ज्ञानसंवेदनको प्रमिति मानकर प्रमाण और उसके फलको अलग-अलग नहीं मानते । अतएव प्रमाण और प्रमितिको सर्वथा अभिन्न न मानकर उन्हें कथंचित् भिन्न और कथंचित् अभिन्न मानना चाहिए। बौद्ध-(२) सम्पूर्ण विद्यमान पदार्थ क्षणिक है, क्योंकि नाश होना पदार्थोंका स्वभाव है। पदार्थोका नश्वर स्वभाव दूसरेके ऊपर अवलम्बित नहीं है। यदि नाश होना पदार्थोंका स्वभाव न हो, तो दूसरी वस्तुओंके संयोग होनेपर भी पदार्थ नष्ट न होने चाहिये। पदार्थोका यह नाशमान स्वभाव पदार्थोंकी आरम्भ और अन्त दोनों अवस्थाओंमें समान है। इसीलिए प्रत्येक पदार्थ क्षणस्थायी है। अतएव जो घट हमें नित्य दिखाई देता है, वह भी प्रतिक्षण नष्ट हो रहा है। घटका प्रत्येक पूर्वक्षण उत्तरक्षणको उत्पन्न करता है। ये समस्त क्षण परस्पर इतने सदृश हैं कि घटके क्षण, क्षणमें नष्ट होनेपर भी घट एकरूप ही दिखाई देता है । अएव क्षणोंकी पारस्परिक सादृश्यताके कारण ही हमें अविद्याके कारण घटमें एकत्वका ज्ञान होता है। जैन-पूर्व और उत्तरक्षणोंका एक साथ अथवा क्रमसे उत्पन्न होना नहीं बन सकता, अतएव पदार्थोंको क्षणिक मानना ठीक नहीं है। तथा क्षणिकवादी निरन्वय विनाश मानते हैं, अतएव क्षणिकवादका सिद्धान्त एकान्तरूप होनेसे सत्य नहीं कहा जा सकता। इसलिए पदार्थोंको उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य रूप ही स्वीकार करना चाहिए । यही सत्का लक्षण है। जिस समय मनुष्य गर्भमें आता है, उस समय जीवका उत्पाद होता है, और उसी समयसे उसकी आयुके अंशोंकी हानि होना प्रारम्भ हो जाती है, इसलिए उसका व्यय होता है, तथा जीवत्व दशाके सदा ध्रुव रहनेसे जीवमें ध्रौव्य पाया जाता है । अतएव पर्यायोंकी अपेक्षासे ही पदार्थोंको क्षणिक मानना चाहिये । द्रव्यकी दृष्टिसे पदार्थ नित्य ही हैं। वैभाषिक बौद्ध-(३) ज्ञान जिस पदार्थसे उत्पन्न होता है उसी पदार्थको जानता है। अतएव पदार्थ कारण हैं, और ज्ञान कार्य है। जैसे अग्निका धूम कारण है, क्योंकि अग्नि और धूमका अन्वय-व्यतिरेक सम्बन्ध है । इसी तरह पदार्थ भी ज्ञानका कारण है, क्योंकि पदार्थ ज्ञानके साथ अन्वय-व्यतिरेकसे सम्बद्ध है । यदि ज्ञान पदार्थसे उत्पन्न न हो, तो घड़ेके ज्ञानसे घड़ेका ही ज्ञान होना चाहिये, अन्य पदार्थोंका नहीं, यह व्यवस्था नहीं बन सकती। जैन-(क) बौद्धोंके अनुसार प्रत्येक पदार्थ क्षण-क्षणमें नष्ट होनेवाले हैं। अतएव जब तक एक पदार्थ बनकर पूर्ण न हो जाय, उस समय तक वह ज्ञानकी उत्पत्ति नहीं कर सकता। तथा जिस क्षणमें ज्ञान उत्पन्न होता है, उस समय पदार्थ नष्ट हो जाता है । अतएव पदार्थ ज्ञानका कारण नहीं कहा जा सकता। (ख) क्रमते होनेवाले पदार्थोंमें ही कार्य-कारण भाव हो सकता है, परन्तु बौद्धमतमें कोई भी वस्तु क्षण मात्रसे अधिक नहीं ठहरती। अतएव ज्ञानकी उत्पत्तिके क्षणमें ज्ञानके कारण पदार्थका नाश हो जानेसे पदार्थसे ज्ञानकी उत्पत्ति नहीं हो सकती। क्योंकि ज्ञान उत्पन्न होनेके पहले ही पदार्थ नष्ट हो जाता है। (ग) पदार्थको ज्ञानका सहभावी माननेसे भी पदार्थ ज्ञानका कारण नहीं हो सकता। क्योंकि एक साथ उत्पन्न होनेवाली दो वस्तुओंमें कार्य-कारण सम्बन्ध नहीं बन सकता। (घ) यदि पदार्थको ज्ञानमें कारण माना जाय, तो इन्द्रियोंको भी ज्ञानकी उत्पत्तिमें कारण मानना चाहिये, क्योंकि इन्द्रियाँ भी ज्ञानको पैदा करती है। (च) ज्ञानकी उत्पत्ति पदार्थके ऊपर अवलम्बित नहीं है, कारण कि मृगतृष्णामें जलरूप पदार्थक अभाव होनेपर भी जलका ज्ञान होता है। अतएव जब तक पदार्थ और ज्ञानमें 'जहाँ पदार्थ न हो, वहाँ ज्ञान न हो' इस प्रकारका व्यतिरेक सम्बन्ध सिद्ध न हो, तब तक पदार्थको ज्ञानका हेतु नहीं कह सकते । (छ) योगियोंके अतीत और अनागत पदार्थोंको जानते समय अतीत, अनागत पदार्थोंका अभाव रहता है । अतएव अतीत, अनागत पदार्थ ज्ञानमें कारण नहीं हो सकते । (ज) प्रकाश्य रूप अर्थसे प्रकाशक रूप ज्ञानकी उत्पत्ति मानना भी ठीक नहीं। क्योंकि घट दीपकसे उत्पन्न नहीं होता, फिर भी दीपक घटको प्रकाशित करता है। (झ) ज्ञानकी पदार्थसे उत्पत्ति मानकर ज्ञानको पदार्थका ज्ञाता माननेसे स्मृतिको भी प्रमाण नहीं कहा जा सकता। क्योंकि स्मृति किसी पदार्थसे उत्पन्न नहीं होती। इसी प्रकार एक स्वसं
SR No.009653
Book TitleSyadvada Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1970
Total Pages454
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size193 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy