SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 177
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अन्य. यो. व्य. श्लोक १४] स्याद्वादमञ्जरी १२७ न पुनराकाशम् । तत्र च स्पर्शो निर्णीयत एव । यथा शब्दाश्रयः स्पर्शवान , अनुवातप्रतिवातयोर्विप्रकृष्टनिकटशरीरिणोपलभ्यमानानुपलभ्यमानेन्द्रियार्थत्वात् तथाविधगन्धाधारद्रव्यपरमाणुवत् । इति असिद्धः प्रथमः। द्वितीयस्तु गन्धद्रव्येण व्यभिचारादनैकान्तिकः। वर्त्यमानजात्यकस्तूरिकादि गन्धद्रव्यं हि पिहितद्वारापवरकस्यान्तर्विशति बहिश्च निर्याति, न चापौद्गलिकम् । अथ तत्र सूक्ष्मरन्ध्रसंभवाद् नातिनिबिडत्वम् , अतस्तत्र तत्प्रवेशनिष्क्रमौ। कथमन्यथोद्घाटितद्वारावस्थायामिव न तदेकार्णवत्वम् । सर्वथा नीरन्ध्रे तु प्रदेशे न तयोः संभवः इति चेत् , तर्हि शब्देऽप्येतत्समानम् इत्यसिद्धो हेतुः । तृतीयस्तु तडिल्लतोल्कादिभिरनैकान्तिकः । चतुर्थोऽपि तथैव । गन्धद्रव्यविशेषसूक्ष्मरजोधूमादिभिर्व्यभिचारात् । न हि गन्धद्रव्यादिकमपि नासायां निविशमानं तद्विवरद्वारदेशोद्भिन्नश्मश्रुप्रेरकं दृश्यते । पञ्चमः पुनः असिद्धः। तथाहि । न गगनगुणः शब्दः, अस्मदादिप्रत्यक्षत्वाद्, रूपादिवत् । इति सिद्धः पौद्गलिकत्वात् सामान्यविशेषात्मकः शब्द इति ॥ (२) अत्यन्त सघन प्रदेशमें प्रवेश करते और निकलते हुए नहीं रुकता है; (३) शब्दके पूर्व और पश्चात् उसके अवयव नहीं दिखाई देते; (४) वह सूक्ष्म मूर्त द्रव्योंका प्रेरक नहीं है। तथा (५) शब्द आकाशका गुण है। (१) उक्त हेतुओंमें प्रथम हेतु असिद्ध है। क्योंकि शब्द पर्यायका आश्रय भाषावर्गणा है ( सजातीय वस्तुओंके समुदायको वर्गणा कहते हैं, जिन पुद्गल वर्गणाओंसे शब्द बनते हैं, उन्हें भाषावर्गणा कहते है ), आकाश नहीं। तथा, शब्दका आश्रय यह भाषावर्गणा स्पर्श गुणसे निर्णीत किया जाता है। जैसे, शब्दका आश्रय भाषावर्गणा स्पर्शसे युक्त है; क्योंकि जिस प्रकार गन्धके आश्रित द्रव्यपरमाणु इन्द्रिय ( घ्राणेन्द्रिय ) का विषय होनेसे, वायुके अनुकूल होनेपर दूर खड़े हुए मनुष्यके पास पहुँच जाते हैं, और वायुके प्रतिकूल होनेपर पास बैठे हुए मनुष्य तक भी नहीं पहुँचते; उसी प्रकार शब्दके आश्रित द्रव्यपरमाणु भी इन्द्रिय ( कर्णेन्द्रिय ) का विषय होनेसे, वायुके अनुकूल होनेपर दूर देशमें खड़े हुए श्रोताके पास तक पहुँचते हैं, और वायुके प्रतिकूल होनेसे समीपमें बैठे हुए श्रोताके पास तक भी नहीं पहुँचते । अतएव जैसे गन्ध इन्द्रियका विषय होनेसे पौद्गलिक है, वैसे हो शब्द भी इन्द्रियका विषय होनेसे पौद्गलिक है। इसलिए वैशेषिकोंका प्रथम हेतु असिद्ध है। (२) दूसरे हेतुमें गन्ध द्रव्यरूप विपक्षमें रहनेके कारण गन्ध द्रव्यसे व्यभिचार आता है, इसलिए यह हेतु अनैकान्तिक है। वर्तनशील उत्कृष्ट कस्तूरिका आदि गन्ध द्रव्य बन्द द्वारवाले मकानमें प्रवेश करते और निकलते हुए नहीं रुकते फिर भी पौद्गलिक हैं। शंका-बन्द द्वारवाले मकानमें सूक्ष्म रन्ध्रोंका सद्भाव होनेसे उसमें अत्यन्त सघनता नहीं होती, अतः उस मकान में गन्ध द्रव्यका प्रवेश होता है और उसमेंसे वह बाहर निकलता है। अन्यथा जिसका द्वार खुला हुआ है ऐसे मकानमें, जिस प्रकार गन्ध द्रव्य अखण्ड प्रवाह रूपमें प्रवेश करता है और उसमेंसे बाहर निकलता है, उसी प्रकार उस मकानमें सूक्ष्म रन्ध्रोंका अभाव होनेपर, गन्ध द्रव्य अखण्ड प्रवाहके रूपसे क्यों नहीं प्रवेश करता और बाहर निकल जाता? सर्वथा रन्ध्र रहित प्रदेशमें गन्ध द्रव्यका निर्गम और प्रवेश संभव नहीं। समाधान-यह ठीक नहीं। क्योंकि शब्दके भी विषयमें भी यही सम्भव है, अतएव दूसरा हेतु भी असिद्ध है। (३) तीसरा हेतु विद्युत् और उल्कापात आदिसे व्यभिचारी है । क्योंकि विद्युत् आदिके अवयव विद्युत्के पहले और पीछे नहीं पाये जाते, फिर भी विद्युत् आदि पौद्गलिक माने जाते हैं। (४) इसी तरह चौथा हेतु भी व्यभिचारी है, क्योंकि विशिष्ट गन्ध द्रव्य, सूक्ष्म रज व धूम आदिके साथ उसका व्यभिचार है-विपक्षभूत गन्धद्रव्य, रज और धूल आदिमें वह रहता है। नासिकामें प्रवेश करनेवाला गन्ध द्रव्य आदि भी नासिकाके विवरद्वारमें फूटी हुई श्मश्रुका प्रेरक वह नहीं देखा जाता । तथा (५) पाँचवाँ हेतु असिद्ध है । शब्द आकाशका गुण नहीं है, क्योंकि वह रूपादिकी तरह हमारी इन्द्रियोंके प्रत्यक्ष है। इसलिए पौद्गलिक होनेसे शब्दको सामान्य और विशेष रूप ही मानना चाहिए।
SR No.009653
Book TitleSyadvada Manjari
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJagdishchandra Jain
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1970
Total Pages454
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size193 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy