________________
14
दिया है। इस संस्करणके तैयार करने में प्रो. आनन्दशंकर बापूभाई ध्रुवको स्याद्वादमंजरी तथा अन्य अनेक ग्रन्थोंसे जो मुझे सहायता मिली है, उसका यथास्थान उल्लेख किया गया है। इन सबका आभारी हैं।
जुवेलीबाग, तारदेव वम्बई
जगदीशचन्द्र जैन ५०-६-१५
द्वितीय भावृत्ति की भूमिका
म्यादादमंजरी संस्कृत एवं अंग्रेजी की विविध परीक्षाओं के पाठ्यक्रम में अनेक वर्षों से नियत है। तरुण जैन माध-साध्वियां भी जैन दर्शन का सरल एवं वोधगम्य भाषा में ज्ञान प्राप्त करने के लिये इस ग्रंथ का पारायण करते आये है।
किन्तु इधर अनेक वर्पोमे इस ग्रंथके उपलब्ध न होने के कारण विद्यार्थियोंको बड़ी कठिनाईका सामना करना पड़ रहा था। साहित्यप्रेमी डॉक्टर आदिनाथ नेमिनाथ उपाध्येका ध्यान इस ओर आकर्षित हुआ। रायचन्द्र शास्त्रमालाके अधिकारियोंसे उन्होंने पत्रव्यवहार किया। इसका परिणाम है यह प्रस्तुत संस्करण जो पूर्व संस्करणके ३५ वर्ष बाद प्रकाशित हो रहा है ।
अनुवादके संशोधित और परिमाजिति करने में कोई कमी नहीं रक्खी गई है। फलटण (महाराष्ट्र ) के वयोवृद्ध संस्कृत एवं जैन दर्शनके विद्वान् प्रोफेसर एम. जी. कोठारीका संशोधनमें हार्दिक सहयोग प्राप्त हमा है। अस्वस्थ रहते हए भी आपने इस कार्यमें रुचि दिखाई है।
२८ शिवाजी पार्क
बंबई २८ १-६-७०
जगदीशचन्द्र जैन