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________________ संपादकीय षणा लांबा समयथी 'प्रमाणनयतत्त्वालोंक' नामक मूळ ग्रन्थ अलभ्य हतो त्यारे एनी बीवी आवृत्ति छपाय छे ए गौरव लेवा जेवी वात छे. __ जगत्पूज्य शास्त्रविशारद स्व. जैनाचार्य श्री १००८ श्री. विजयधर्मसूरीश्वरजी म. सा. नी कृपार्थी भा ग्रन्थ कलकत्ताना राजकीय संस्कृत विद्यालयमां जैन श्वेताम्बर न्यायनी प्रथम परीक्षामां दाखल थयो त्यारथी अत्यार सुधी आनुं पठन-पाठन अविरत चालु ज छे. वादिचक्रचक्रवर्ती, पूज्य श्री. वादिदेवसूरिजीनो 'स्वोपज्ञ-स्याद्वाद रत्नाकर' तो आछापातळा पंडितोने माटे पण रत्नाकर जेवो ज छे भने ते पूज्य आचार्यना शिष्यरत्न सर्वतोमुखी प्रतिभासम्पन्न रत्नप्रभसूरिजीनी रत्नााकर-अवतारिका' व्याघ्रमुखी होवाथी तेमां प्रवेश पामवो अत्यन्त कष्टसाध्य छे. मावा समये बालजीवोने माटे, अने न्यायमा प्रवेश पामता प्राथमिक अभ्यासीओ माटे पण सरळ अने तार्किक ज्ञान माटे समर्थ छतां नानी टीकानी जरूरत हतीज, मा वात ध्यानमा लईने ज परमदयालु माजीवन विद्योपासक मारा गुरुदेव शासनदीपक स्व. श्री. विद्या विजयजी महाराजश्रीए ते वखतना 'वीरतत्त्व प्रकाशक मंडळ' शिवपुरी संस्थाना मादरणीय विद्वन्मान्य पंडितजी श्री. रामगोपाला
SR No.009649
Book TitlePramana Naya Tattvaloka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHimanshuvijay, Purnanadvijay
PublisherAmblipol Jain Upashray
Publication Year
Total Pages177
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size21 MB
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