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________________ तीसरा प्रकाश २२७ हैं, जिनके द्वारा भी सोने का निरूपण किया जाता है। नयों के कथन करने की इस शैली (व्यवस्था) को ही सप्तभङ्गी कहते हैं । यहाँ 'भङ्ग' शब्द वस्तु के स्वरूपविशेष का प्रतिपादक है। इससे यह सिद्ध हुआ कि प्रत्येक वस्तु में नियत सात स्वरूप-विशेषों का प्रतिपादन करने वाला शब्द-समूह सप्तभङ्गी है। 5 शङ्का-एक वस्तु में सात भङ्गों ( स्वरूप अथवा धर्मों ) का सम्भव कैसे है ? समाधान-जिस प्रकार एक ही घटादि में घट रूप वाला है, रस वाला है, गन्ध वाला है और स्पर्श वाला है, इन जुदे-जुदे व्यवहारों के कारणभूत रूपवत्त्व (रूप) आदि स्वरूपभेद सम्भव हैं उसी 10 प्रकार प्रत्येक वस्तु में होने वाले एक, अनेक, एकानेक, प्रवक्तव्य आदि व्यवहारों के कारणभूत एकत्व, अनेकत्व आदि सात स्वरूपभेद - भी सम्भव हैं। इसी प्रकार परम द्रव्यार्थिक नयके अभिप्राय का विषय परमद्रव्यसत्ता–महासामान्य है। उसकी अपेक्षा से "एक ही अद्वितीय 15 ब्रह्म है, यहाँ नाना-अनेक कुछ भी नहीं है" इस प्रकार का प्रतिपादन किया जाता है। क्योंकि सद्रूप से चेतन और अचेतन पदार्थों में भेद नहीं है। यदि भेद माना जाय तो सद् से भिन्न होने के कारण वे सब असत् हो जाएँगे। ऋजुसूत्रनय परमपर्यायार्थिक नय है। वह भूत और भविष्य के 20 स्पर्श से रहित शुद्ध- केवल वर्तमानकालीन वस्तुस्वरूप को विषय करता है। इस नय के अभिप्राय से ही बौद्धों के क्षणिकवाद की सिद्धि होती है। ये सब नयाभिप्राय सम्पूर्ण अपने विषयभूत अशेषात्मक अनेकान्त को, जो प्रमाण का विषय है, विभक्त करके लोकव्यवहार को कराते हैं कि वस्तु द्रव्यरूप से सत्तासामान्य की अपेक्षा से 25
SR No.009648
Book TitleNyaya Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmbhushan Yati, Darbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1968
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size34 MB
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