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________________ २१६ न्याय-दीपिका वह इस प्रकार से है-साध्यरूप से माना गया यह श्यामतारूप कार्य अपनी निष्पत्ति के लिए कारण की अपेक्षा करता है। वह कारण मैत्री का पुत्रपना तो हो नहीं सकता, क्योंकि उसके बिना भी दूसरे पुरुषों में, जो मैत्री के पुत्र नहीं हैं, श्यामता देखी जाती है। अतः जिस 5 प्रकार कुम्हार, चाक आदि कारणों के बिना ही उत्पन्न होने वाले वस्त्र के कुम्हार आदिक कारण नहीं है उसी प्रकार मैत्री का पुत्रपना - श्यामता का कारण नहीं है, यह निश्चित है। अतएव जहां जहां मैत्री का पुत्रपना है वहां वहां श्यामता नहीं है, किन्तु जहां जहां श्यामता का कारण विशिष्ट नामकर्म से सहित शाकादि आहाररूप 10 परिणाम है वहां वहां उसका कार्य श्यामता है। इस प्रकार सामग्री रूप विशिष्ट नामकर्म से सहित शाकादि आहार परिणाम श्यामता का ब्याप्य है-कारण है । लेकिन उसका गर्भस्थ मैत्रीपुत्ररूप पक्ष में निश्चय नहीं है, अतः वह सन्दिग्धासिद्ध है । और मैत्री का पुत्रपना तो श्यामता के प्रति कारण ही नहीं है, इसलिए वह 15 श्यामतारूप कार्य का गमक नहीं है। अतः उपर्युक्त अनुमान सम्यक अनुमान नहीं है। 'जो उपाधि रहित सम्बन्ध है वह व्याप्ति है, और जो साधनका अव्यापक तथा साध्य का व्यापक है वह उपाधि है' ऐसा किन्हीं (नैयायिकों) का कहना है। पर वह ठीक नहीं है। क्योंकि ब्याप्ति का 20 उक्त लक्षण मानने पर अन्योन्याश्रय दोष पाता है। तात्पर्य यह कि उपाधि का लक्षण व्याप्तिघटित है और व्याप्ति का लक्षण उपाधिघटित है। अतः व्याप्ति जब सिद्ध हो जावे तब उपाधि सिद्ध हो और जब उपाधि सिद्ध हो जावे तब व्याप्ति सिद्ध हो, इस तरह उपाधि रहित सम्बन्ध को व्याप्ति का लझण मानने में अन्योन्याश्रय नामका ____ 25 दोष प्रसक्त होता है। इस उपाधि का निराकरण कारुण्यकलिका में
SR No.009648
Book TitleNyaya Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmbhushan Yati, Darbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1968
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size34 MB
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