SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 124
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८८ न्याय-दोपिका 'भट्टारक' जैसे महनीय विशेषणों सहित इनके नामका उल्लेख करके परीक्षामुखके सूत्रको उद्धृत किया है। ___ स्याद्वादविद्यापति--यह प्राचार्य वादिराजसूरिकी विशिष्ट उपाधि थी जो उनके स्याद्वादविद्याके अधिपतित्व–अगाध पाण्डित्यको प्रकट करती है । प्रा० वादिराज अपनी इस उपाधिसे इतने अभिन्न एवं तदात्म जान पड़ते हैं कि उनकी इस उपाधिसे ही पाठक वादिराजसूरिको जान लेते हैं। यही कारण है कि न्यायविनिश्चयविवरणके सन्धिवाक्योंमें 'स्याद्वादविद्यापति' उपाधिके द्वारा ही वे अभिहित हुए हैं। न्यायदीपिकाकारने भी न्यायदीपिका पृ० २४ और ७० पर इसी उपाधिसे उनका उल्लेख किया है और पृ० २४ पर तो इसी नामके साथ एक वाक्यको भी उद्धृत किया है। मालूम होता है कि 'न्यायविनिश्चय' जैसे दुरूह तकंग्रंथपर अपना बृहत्काय विवरण लिखनेके उपलक्षमें ही इन्हें गुरूजनों अथवा विद्वानों द्वारा उक्त गौरवपूर्ण स्याद्वादविद्याके धनीरूप उच्च पदवीसे सम्मानित किया होगा । वादिराजसूरि केवल अपने समयके महान् तार्किक ही नहीं थे, बल्कि वे सच्चे अहद्भक्त एवं आज्ञाप्रधानी, वैयाकरण और अद्वितीय उच्च कवि भी थे। न्यायविनिश्चयविवरण, पार्श्वनाथचरित, यशोधरचरित, प्रमाणनिर्णय और एकीभावस्तोत्र आदि इनकी कृतियाँ है । इन्होंने अपना पार्श्वनाथचरित शकसम्बत् ६४७ (१०२५ ई० ) में समाप्त किया है। अतः ये ईसाकी ११वीं सदीके पूर्वार्द्धके विद्वान हैं। - १ इसका एक नमूना इस प्रकार है-इत्याचार्यस्याद्वादविद्यापतिविरचित न्यायविनिश्चयकारिकाविवरणे प्रत्यक्षप्रस्ताव: प्रथम ।'लि. पत्र ३०६। २'वादिराजमनु शाब्दिकलोको वादिराजमनु तार्किकसिंहः । वादिराजमनु काव्यकृतस्ते वादिराजमनु भव्यसहायः ।।' -एकीभावस्तोत्र २६ ।
SR No.009648
Book TitleNyaya Dipika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmbhushan Yati, Darbarilal Kothiya
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1968
Total Pages390
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy