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प्रस्तावना
२. अभिनव धर्मभूषण प्रासंगिक
जैनसमाजने अपने प्रतिष्ठित महान् पुरुषों-तीर्थंकरों, राजाओं, प्राचार्यों, श्रेष्ठिवरों, विद्वानों तथा तीर्थक्षेत्रों, मन्दिरों और ग्रंथागारों आदिके इतिवृत्तको संकलन करनेकी प्रवृत्तिकी ओर बहुत कुछ उपेक्षा एवं उदासीनता रखी है। इसीसे अाज सब कुछ होते हुए भी इस विषयमें हम दुनियाँ की नजरोंमें अकिञ्चन समझे जाते हैं । यद्यपि यह प्रकट हैं कि जैन इतिहासकी सामग्री विपुलरूपमें भारतके कोने-कोने में सर्वत्र विद्यमान है पर वह विखरी हुई असम्बद्धरूपमें पड़ी हुई है। यही कारण है कि जैन इतिहासको जाननेके लिए या उसे सम्बद्ध करनेके लिए अपरिमित कठिनाइयाँ आती हैं और अन्धेरे में टटोलना पड़ता है । प्रसन्नताकी बात है कि कुछ दूरदर्शी श्रीमान् विद्वान् वर्गका अब इस ओर ध्यान गया । और उन्होंने इतिहास तथा साहित्यके संकलन, अन्वेषण आदिका क्रियात्मक प्रयत्न प्रारम्भ कर दिया है।
आज हम अपने जिन ग्रन्थकार श्री अभिनव धर्मभूषण का परिचय देना चाहते हैं उनको जानने के लिये जो कुछ साधन प्राप्त हैं वे यद्यपि पूरे पर्याप्त नहीं हैं । उनके माता-पितादिका क्या नाम था ? जन्म और स्वर्गवास कब, कहाँ हुआ? आदिका उनसे कोई पता नहीं चलता है । फिर भी सौभाग्य और सन्तोषकी बात यही है कि उपलब्ध साधनोंसे उनके प्रभावशाली व्यक्तित्व, गुरुपरम्परा, और समयका कुछ प्रामाणिक परिचय मिल जाता है । अतः हम उन्हीं शिलालेख, ग्रन्थोल्लेख आदि साधनोंपरसे ग्रन्थकारके सम्बन्धमें कुछ कहनेके लिये प्रस्तुत हुए हैं । ग्रन्थकार और उनके अभिनव तथा यति विशेषरण
_ इस ग्रन्थके कर्ता अभिनव धर्मभूषण यति हैं। न्यायदीपिकाके पहले और दूससे प्रकाशके पुष्पिकावाक्योंमें 'यति' विशेषण तथा तीसरे