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श्रीसिद्धहेमचन्द्रशब्दानुशासनम्
क्रौड्यादीनाम् | २|४|८०|| क्यादेः | ३|४|७९ || किन्नाल्ल–स्य ।७।१।१३०। की मन्ये वा | ३|१|१२८ ॥ क्लीबे | २|४|१७||
क्लीबे क्तः |५|३|१२३|| कीबे वा | २|१|९३॥ क्लेशादिभ्योऽपात् |५|१|८१ ॥
क्वकुत्रात्रेह |७|२|९३||
क्वचित् ।५।१।१७१|| क्वचित् ।६।२।१४५|| क्वचित्तुर्यात् |७|३|४४||
क्वचित् स्वार्थे |७|३|७| क्वसुष्मती च | २|१|१०५ ॥ क्विप् |५|१|१४८|| क्विवृत्तेरसुधियस्तौ | २|१|५८|| क्वेहामात्रतसस्त्यच् ।६।३|१६|| क्वौ |४|४|११९||
क्षत्रादियः | ६|१|१३|| क्षय्यजय्यौ शक्ती | ४ | ३ |९० ||
क्षिपरटः |५|२|६६।।
क्षिप्राशंसार्थ - यौ |५|४|३ ॥
क्षियाशीः प्रेषे | ७|४|९२ ॥
क्षीरादेयण् |६|२|१४२||
२६९
क्षुत्तृड्गर्धेऽशना-यम् ||३|११३॥ क्षुद्रकमालवा-म्नि | ६।२।११॥
क्षुद्राभ्य एरणवा |६|१|८०|| क्षुधक्लिशकुष - सः |४|३|३१॥ क्षुधवसस्तेषाम् |४|४|४३ ॥ क्षुब्धविरिब्ध-भौ |४|४|७० ||
क्षुम्नादीनाम् | २|३|१६|| शुश्रोः | ५|३|७१||
क्षेः क्षीः | ४|३|८९ || क्षेः क्षी चाष्यार्थे |४| २|७४ ॥ क्षेत्रेऽन्य - यः | ७|१|१७२॥ क्षेपातिग्र-याः | ७|२|८५ ॥ क्षेपे च यच्चयत्रे | ५|४|१८|| क्षेपेऽपिजात्वो - ना | ५|४|१२॥ क्षेमप्रिय - खाण | ५|१|१०५ ॥ क्षैशुषिपचो - वम् |४| २|७८॥
ख
खनो डडरेकेकव० | ५|३|१३७॥
खर - खुराना - नस् | ७|३|१६०|| खलादिभ्यो लिन् |६|२|२७|| खारीकाक- कच् |६|४|१४९॥ खार्या वा | ७|३|१०२ ॥
खितिखीती - |१|४|३६|