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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra यही है जिंदगी www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७४ ३७. आनंद की आम्रडाली आनंद मनुष्य का स्वभाव है । कोई बाहर के जड़-चेतन पदार्थों में से आनंद की प्राप्ति का प्रयत्न करता है, तो कोई भीतर से आनंद की अनुभूति करने की चेष्टा करता है । राग-द्वेष और अज्ञान से आवृत्त जीवात्मा क्या किसी को भी अखंड... अविच्छिन्न और प्रवर्द्धमान आनंद प्रदान कर सकता है? क्षण-क्षण परिवर्तनशील विचारों वाला मानव क्या किसी को निरंतर आनंद प्रदान कर सकता है ? हम भी वैसे ही इन्सान हैं न? क्या आपने अपने किसी भी स्नेही को, स्वजन को, परिजन को अखंड और अविच्छिन्न आनंद प्रदान किया है ? क्या आपने अपने मित्रों को, परिचितों को निरंतर आनंद दिया है? कभी न कभी तो अरुचि, द्वेष गुस्सा या अभाव पैदा हो ही गया होगा! तो फिर उन मित्रों से या स्नेहीस्वजनों से आप अखंड आनंद की अपेक्षा कैसे रख सकते हैं? परद्रव्यों से सुख की, शांति की या आनंद की अपेक्षा रखते हुए हमने सुख खो दिया है, शांति नष्ट कर दी है, आनंद मिटा दिया है। जड़ द्रव्य हो या चेतन द्रव्य हो, अपनी आत्मा से भिन्न जो भी द्रव्य हैं, पदार्थ हैं, उनसे हमें आनंद की अपेक्षा नहीं रखनी है। हाँ, हमें दूसरे जीवों को निरपेक्ष भाव से आनंद प्रदान करते रहना है। मनुष्य का ऐसा स्वभाव है कि वह जिसे चाहता है, जिससे प्रेम करता है, उस व्यक्ति से सदैव आनंद की अपेक्षा रखता है। वह भूल जाता है कि परिवर्तनशीलता तो संसार का स्वभाव है। आज जिस व्यक्ति से स्नेह मिला, संभव है कि कल उस व्यक्ति से स्नेह नहीं मिले। रागी और द्वेषी जीवात्मा से सदैव स्नेह-आनंद नहीं मिल सकता । उसका चित्त चंचल, वैसे ही उसका स्नेह भी चंचल ! स्थिर और शाश्वत स्नेह होता है वीतराग में! लेकिन वीतराग से स्नेहआनंद पाने की कला हमें हस्तगत होनी चाहिए। पहले हमें ही वीतराग परमात्मा से प्रीति करनी होगी। निरपेक्ष प्रीति बाँधनी होगी । उस प्रीति को निभाना होगा। प्रीति करना आसान है, निभाना मुश्किल है। For Private And Personal Use Only बाइसवें तीर्थंकर भगवान नेमिनाथ के साथ राजीमति ने कैसी प्रीति निभाई थी। नौ-नौ जन्मों से प्रीति - संबंध चला आ रहा था। संसार के अंतिम जन्म में
SR No.009641
Book TitleYahi Hai Jindgi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages299
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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