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यही है जिंदगी
३५ मैंने सोचा कि 'मुझे ऐसा क्यों हुआ?' मैंने पाया कि मेरी अशांति का कारण मेरा अस्थिर विषयों का राग था। मेरे विषाद का कारण मेरी क्षणिक पदार्थों की आसक्ति थी। मेरी बेचैनी का कारण विनाशी स्नेहबंधन थे! । दूसरों के जीवन में भी मैंने देखा है। कई आस्तिक-नास्तिक स्त्री-पुरुष मेरे पास आते हैं, कई धार्मिक-अधार्मिक व्यक्ति मेरे पास आते हैं। वे लोग ज्यादातर अशांति और बेचैनी की शिकायत करते रहते हैं। मैंने जब उनका मनोवैज्ञानिक विश्लेषण किया, मुझे लगा कि वे लोग अस्थिर, विनाशी और क्षणिक भावों के अनुरागी थे! इस अनुराग से ही वे अशान्त थे! बेचैन थे! ___ मैंने अनुभव किया है कि अस्थिर, विनाशी और क्षणिक भावों में हृदय सदैव अतृप्त रहता है। कभी-कभी तृप्ति की डकार आती है, परन्तु वह तृप्ति क्षणिक ही होती है। अस्थिर और विनाशी होती है। थोड़े समय के पश्चात् वही की वह अतृप्ति! ___ हाँ, मुझे थोड़े क्षणों के लिए स्थिर, शाश्वत और अविनाशी परमात्मतत्त्व का आस्वाद मिला है, इसलिए मैं उसका अनुरागी बना रहना चाहता हूँ, अन्यथा वैसी चाह होना संभव ही न होता। मैं नहीं जानता कि मेरी यह तीव्र चाह कब पूर्ण होगी? मुझे वह आस्वाद स्थिर, याद आता है... मैं अपूर्व आनंद का अनुभव करता हूँ। मेरा यह आनंद शाश्वत और अविनाशी हो जाय तो!
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