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यही है जिंदगी
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१२. राग की आग बड़ी खतरनाक
__ आत्मा पर राग का कितना प्रबल प्रभाव है, कितना गहरा असर है - इस विषय पर सोच रहा था। प्रभात का समय था । पूर्व दिशा लाल-लाल हो गई थी। हरियाली से हराभरा वन था। सर्पाकार रास्ता वन में से गुजर रहा था। हमारी पदयात्रा चल रही थी। हम सब मौन चल रहे थे।
मेरा मन रागदशा पर सोच रहा था। ऐसे ही बीहड़ जंगल में महासती सीता का श्रीराम ने त्याग कर दिया था। निर्दोष सीताजी का, लोकापवाद से भयभीत श्रीराम ने त्याग कर दिया था। सीताजी के चित्त में फिर भी श्रीराम के प्रति वैसा ही राग था! इतना ही नहीं, सीता के सतीत्व की अयोध्या को प्रतीति कराने हेतु अग्निपरीक्षा की गई, सीताजी को अग्नि-खाई में प्रवेश करवाया गया। सतीत्व के प्रभाव से अग्नि-खाई पानी से भरा सरोवर बन गई। श्रीराम ने सीताजी को अयोध्या में पदार्पण करने के लिए कहा... उस समय सीताजी ने स्वयं केशलुंचन कर चारित्र-जीवन स्वीकार कर लिया! सीताजी साध्वी बन गई... त्यागी-वैरागी बन कर चल दी। लेकिन हाँ, तब भी सीताजी के हृदय में... गहराई तक श्रीराम के प्रति राग छुपकर बैठा ही था!
साध्वी सीता की आत्मा मृत्यु के पश्चात् बारहवें देवलोक की इंद्र बनी। श्रीराम के प्रति जो राग था, कम नहीं हुआ था। इधर श्रीराम लक्ष्मणजी की मृत्यु से विरक्त बन गए थे। राज्य का त्याग कर वे त्यागी श्रमण बन गए थे। उनके हृदय में नहीं था राग, नहीं था द्वेष । एक जंगल में पत्थर की चट्टान पर बैठकर उन्होंने ध्यान लगाया था। उस सीतेंद्र ने अवधिज्ञान से श्रीराम को ध्यानस्थ अवस्था में देखा...| श्रीराम के विरक्त हृदय को देखा | उनके हृदय में सीतेंद्र ने सीता को नहीं देखा... सीतेंद्र के हृदय में श्रीराम बिराजमान थे, महामुनि श्रीराम के हृदय में सीता नहीं थी!
सीतेंद्र ने ध्यानमग्न श्रीराम को ध्यान से विचलित करने को सोचा : 'यदि श्रीराम शुक्लध्यान में चले गए तो वे वीतराग बन जायेंगे, सर्वज्ञ बन जायेंगे, वे सिद्ध-बुद्ध और मुक्त हो जायेंगे... तब फिर उनका और मेरा संबंध इस संसार में कभी भी नहीं हो सकेगा...।'
राग संबंध की कामना करवाता है। सीतेंद्र का रागी हृदय श्रीराम के साथ पुनः संसार में संबंध चाहता है! साध्वी-जीवन में उस राग की आग पर राख,
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