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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २६१ यही है जिंदगी व११७. आक्रामक पर औदार्यसहित ३ उस युवक ने कहा : 'मुझे विश्व में प्रवर्तित अन्याय, नीचता, त्रास, अधमता, कुटिलता और भ्रष्टाचारों के सामने बगावत करनी है, क्रान्ति करनी है...।' ० ० ० मैंने उसको कहा : भैया, जिन अनिष्टों के सामने तू बगावत करना चाहता है, उन अनिष्टों को तूने अच्छी तरह जान लिया है क्या? उन अनिष्टों का अध्ययन किया है क्या? गंभीर चिंतन कर, उन अनिष्टों का विश्लेषण किया है क्या? - तूने न्याय-अन्याय को सापेक्ष दृष्टि से देखा है क्या? - नीचता और उत्तमता के उद्गमस्रोतों को देखा है क्या? - त्रास और दया के विषय में गहन चिंतन किया है क्या? - सदाचार और भ्रष्टाचारों के औचित्य-अनौचित्य के बारे में गंभीर अध्ययन किया है क्या? ऐसा चिंतन किये बिना यदि तू क्रान्ति करने जायेगा, तो मुझे लगता है कि तू दूसरों के प्रति अन्याय कर बैठेगा! तू दूसरों पर त्रास बरसा देगा... नीचतापूर्ण व्यवहार कर देगा! - कुछ भी करने से पहले, सोचना आवश्यक है। - कुछ कर डालने की जल्दबाजी अनर्थ पैदा करती है। - जल्दबाजी में चिंतन को स्थान नहीं होता। - इसलिये तो भगवान महावीर ने कहा कि जैसे पुण्य को जानना है, वैसे पापों को भी जानो। - पुण्य करना है, पहले पुण्य को जानो। - पाप नहीं करना है, पहले पापों को जानो। - जानने की क्रिया व्यापक, गहन और गंभीर बनानी चाहिए। - थकना नहीं है जानने का परिश्रम करने में! अनवरत जानते रहना है। - जानना अनंत है! - समझना अनंत है! For Private And Personal Use Only
SR No.009641
Book TitleYahi Hai Jindgi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages299
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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