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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra यही है जिंदगी २६० एक पुरुष ने वृद्धावस्था में पुत्री को क्षमा प्रदान कर के शांति पायी, दूसरे ने मरने के बाद देव बनकर क्षमा प्रदान की और शांति पायी! जो हमसे क्षमा चाहते हैं, उनको क्षमा दे दो । उनको अपने अपराधों का अहसास हो गया है, तब तो वे हम से क्षमायाचना करते हैं । - दूसरों के अपराधों को अपने मन में संग्रहीत कर, हम स्वयं अपराधी बन जाते हैं - यह बात हम नहीं जानते ! - दूसरों की भूलें अपने मन में क्यों भरना ? अपने मन को भूलों का भंडार क्यों बनाना? ऐसा करने से नुकसान अपने को ही होता है। - अशांति, उद्वेग, बेचैनी और द्वेष ! www.kobatirth.org - यह नुकसान, लाखों-करोड़ों रुपये के नुकसान से भी ज्यादा है। नहीं समझना हो तो मत समझो, आग्रह नहीं है, परन्तु समझ जाएँ तो शांति है, समता है, प्रसन्नता है । - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir क्षमायाचना करनेवाले का तिरस्कार करना, अपमान करना... उचित है - शान्त दिमाग से सोचना । - • 'यह सच्चे मन से क्षमा नहीं माँगता, कपट करता है, दिखावा करता है ।' चाहे दिखावा सही, वह नम्र बन कर हमारे पास तो आया है ! कहाँ तक - 'उसको हमसे स्वार्थ है, इसलिये आया है...' चाहे स्वार्थ सही, आप उसकी स्वार्थपूर्ति न करना, क्षमादान तो दे सकते हैं! - - क्षमा का दान देने से आपको बड़ा फायदा है । नहीं देने में बड़ा नुकसान है। क्षमायाचना सच्चे मन से हो या कपट से हो, आप सच्चे मन से क्षमादान दे दो! अन्यथा, एक दिन आपको क्षमा की याचना करनी पड़ेगी । जब तक हम छोटे-बड़े अपराध करते रहते हैं, तब तक हमें दूसरों के अपराधों को भूल जाने का, माफ कर देने का सीखना होगा । For Private And Personal Use Only - क्योंकि हर व्यक्ति चाहता है कि दूसरे लोग उसके अपराधों को माफ कर दे। हमें अपने अपराधों की माफी चाहिए तो दूसरों के अपराधों को माफ करना ही होगा।
SR No.009641
Book TitleYahi Hai Jindgi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages299
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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