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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra यही है जिंदगी २३१ - कल्पना के आलोक में चक्रवर्ती सनत्कुमार सामने आए । उनको अद्भुत सुन्दर शरीर मिला था । देवलोक के देव उनका सौन्दर्य देखने आए थे! और उसी दिन उनके शरीर में सोलह रोग उत्पन्न हो गये थे। उनका मन विरक्त हो गया और वे श्रमण बन गये। क्या यह उनकी अशक्ति थी ? नहीं, रोगों के हमले ने उनकी ज्ञानदृष्टि खोल दी थी - ' मानवशरीर ऐसा ही है। उसका सौन्दर्य शाश्वत नहीं है, शाश्वत सौन्दर्य तो आत्मा का होता है। आत्मा का सौन्दर्य पाने के लिए शरीर की आसक्ति तोड़नी होगी । विरक्ति ही आसक्ति को तोड़ सकती है।' क्या चक्रवर्ती की विरक्ति अशक्ति थी? नहीं, विरक्ति ने ममत्व के भीतरी बंधनों को तोड़ने का प्रचंड पुरुषार्थ करवाया। - www.kobatirth.org कल्पना के आलोक में राजा भर्तृहरि उभर आया । राजा की प्रिय रानी ने विश्वासघात कर दिया । परपुरुष के साथ उसने शारीरिक संबंध बाँध लिया था । भर्तृहरि ने जब इस दुर्घटना को जाना, उसका मन संसार से विरक्त हो गया। उसने राजमहल का त्याग कर दिया, वह संन्यासी बन गया। रानी के विश्वासघात ने राजा की ज्ञानदृष्टि खोल दी थी - 'रानी का क्या दोष ? उसके भीतरी शत्रु कामवासना ने उसको परपुरुषगामी बनायी। सभी पापों का मूल ये भीतर के शत्रु ही हैं। मुझे तत्काल अपने भीतर के शत्रुओं को परास्त करने होंगे। अन्यथा वे मेरे पास भी अनर्थ करवा सकते हैं । भीतर के शत्रुओं को परास्त करने के लिए संन्यासी का जीवन ही उपयुक्त है।' क्या भर्तृहरि की यह अशक्ति थी? नहीं, विरक्ति स्वयं महाशक्ति है जो कि भीतर के शत्रुओं का नाश करती है। - - Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ममत्व में डूबे हुए मनुष्यों को विरक्ति अशक्ति लगती है। भौतिक सुखों की आसक्ति में बंधे हुए मनुष्यों को विरक्ति अशक्ति लगती है। वैषयिक सुखों की तीव्र चाह वाले मनुष्यों को विरक्ति अशक्ति लगती है । विरक्ति अशक्ति नहीं है। विरक्ति आत्मा की महाशक्ति है । विरक्ति अनंत अनंत कर्मों का नाश करती है। विरक्ति आत्मा की अनंत शक्ति को जाग्रत करती है। For Private And Personal Use Only
SR No.009641
Book TitleYahi Hai Jindgi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages299
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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