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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यही है जिंदगी १४५ ७२. दुःख की जड़ आसक्ति कश्मीर-नरेश ललितादित्य विशाल सेना के साथ पंजाब जा रहा था। रास्ते में सागर सी सिन्धु नदी आयी। सिन्धु का जलप्रवाह बढ़ रहा था। राजा ललितादित्य चिन्तामग्न हो गया । ‘ऐसे जलप्रवाह को कैसे पार किया जाय?' राजा के साथ उनका महामंत्री चिंकूण भी था। चिंकूण ने राजा को आश्वासन देते हुए कहा : 'महाराजा, आप चिन्ता नहीं करें, सिन्धु को पार कर हम पंजाब में प्रवेश कर सकेंगे। आपकी धर्मप्रसार की भावना सफल होगी।' राजा ललितादित्य सेना के साथ सिन्धु के तट पर पहुँचा | मंत्री चिंकूण ने अपनी जेब से ऐक तेजस्वी मणि निकाली और सिन्धु के जलप्रवाह में डाल दी। शीघ्र ही पानी दो भाग में पृथक् हो गया... सामने वाले किनारे तक मार्ग बन गया। राजा सेना के साथ सामने किनारे पहुँच गया। महामंत्री ने दूसरी मणि जलप्रवाह में डाली और जलप्रवाह पूर्ववत् हो गया। मंत्री ने दोनों मणि निकाल लीं। राजा आश्चर्यचकित हो गया। उसने चिंकूण को कहा : 'तुझे मेरे खजाने में से जो भी उत्तम वस्तु चाहिए, माँग ले और मुझे ये दो मणि दे दे।' मंत्री ने कहा : 'महाराजा, आपको चाहिए तो ये दोनों मणि ले लें परन्तु मुझे भगवान बुद्ध की वह मूर्ति देने की कृपा करें कि जो मगध - नरेश ने आपको भेंट भेजी है।' राजा ने भगवान बुद्ध की मूर्ति चिंकूण को दे दी। चिंकूण मूर्ति पा कर भावविभोर हो गया... विरक्त बना हुआ चिंकूण मूर्ति लेकर अपने वतन चला गया। __ कहानी तो इतनी ही है, परन्तु चिंकूण ने मुझे विचारमग्न कर दिया। उसने सहजता से चन्द्रकान्त मणि जैसा मूल्यवान, प्रभावशाली और चमत्कारिक मणि राजा को दिया! और बदले में बुद्ध की मूर्ति माँग ली। क्या सोचा होगा उस प्रज्ञावंत महामंत्री ने अपने मन में? यह चन्द्रकान्त मणि तो एक नदी से पार उतरने में सहायता कर सकता है... जबकि यह मूर्ति भवसागर से पार उतरने में सहायता करेगी... मुझे भवसागर से पार उतरना है... निर्वाण पाना है...। For Private And Personal Use Only
SR No.009641
Book TitleYahi Hai Jindgi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages299
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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