________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
यही है जिंदगी
१४४
मेरे साथ वाले सद्गृहस्थ ने उसको रोटी खिलायी, पानी पिलाया... और हम वहाँ से चले ।
अपने स्थान पर पहुँचने के बाद भी वह विकलांग भिक्षुक मेरे मन में अनेक गंभीर बातें पैदा करता रहा ।
वह सोचता होगा : ‘यदि भगवान मुझे दोनों हाथ दे दें तो मैं उन हाथों से कभी भी बुरा काम नहीं करूँगा । हाथों से हिंसा नहीं करूँगा, छीना-झपटी नहीं करूँगा, खराब लिखूँगा नहीं। चोरी नहीं करूँगा... कोई भी बुरा काम नहीं करूँगा...।' वह ऐसा सोचता होगा क्योंकि वह इतना तो समझता है कि 'मैंने इन हाथों से बुरे काम किये होंगे इसलिए मेरे हाथ कट गए हैं...।' अब, जब उसके हाथ नही रहे..... हाथों की उपयोगिता... महत्ता उसके खयाल में आ रही होगी |
तब
तो क्या यह मानव-स्वभाव है कि जब तक उसके पास मानवदेह है तब तक उसका सदुपयोग... उसकी महत्ता ... मूल्यांकन वह नहीं समझ पाता ? ज्ञानी पुरुषों ने तो मानवदेह का मूल्य अमूल्य बताया है ... मानव - जीवन को दुर्लभ बताया है... परन्तु फिर भी क्यों मनुष्य अपनी दुर्लभ देह का दुरुपयोग कर रहा है? क्या, जब उसके पास मानवदेह नहीं रहेगा तब वह मानवदेह के लिए तरसेगा ?
जिसकी आँखें चली गई होती हैं, अन्धापन आ गया होता है तब उसको आँखों का सदुपयोग करने को सूझता है । आँखें होती हैं तब तो आँखों का दुरुपयोग ही करता रहता है।
एक श्रीमन्त को मैंने कहा था : 'तुम्हारे पास अच्छी संपत्ति है तो उसका सदुपयोग कर लो... धर्मकार्य में व्यय करो।' उसने मेरी बात एक कान से सुनी, दूसरे कान से निकाल दी। कुछ वर्ष बाद जब वह मिला, श्रीमंत नहीं रहा था, निर्धन हो गया था। मैंने उसको कुछ नहीं कहा, परन्तु वह बोला : 'गुरुदेव, अब यदि मेरे पास संपत्ति आएगी तो मैं धर्मकार्य में लगाऊँगा, संपत्ति का सद्व्यय करूँगा । '
साधन जब हमारे पास होते हैं तब हम साध्य भूल जाते हैं! साधन जब हमारे पास नहीं रहते - तब हम साध्य को याद करते हैं! कितनी बड़ी भूल है अपनी?
हमारी एक-एक इन्द्रिय का सदुपयोग हमें करना चाहिए। दुरुपयोग तो करना ही नहीं है। अन्यथा, हमारी इन्द्रियाँ विकल हो जायेंगी। हम जब परवश हो जायेंगे तब हमारे दुःख-दर्द की सीमा नहीं रहेगी।
For Private And Personal Use Only