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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यही है जिंदगी ९८ ४९. अपने को केवल माध्यम समझें । उसने शिकायत के स्वरों में कहा : 'मेरे भाइयों के लिये मैंने कितना त्याग किया है... क्या बताऊँ? आज मेरे वे दोनों भाई मेरी ओर देखना भी नहीं चाहते, अब उनको मेरी कोई आवश्यकता नहीं रही...।' बोलते-बोलते उसकी आँखें डबडबा गई। मैंने उसको आश्वासन दिया, हार्दिक भावों से उसके हृदय को भर दिया... उसका चित्त शांत हो गया। परन्तु मैं सोचता ही रहा...। भीतरी मन से प्रश्न उठा : 'क्या कोई व्यक्ति, कोई एक आत्मा दूसरी आत्मा के लिए कुछ कर सकता है? कर्तृत्व का यह अभिमान सही है क्या?' ___ कर्म-सिद्धान्त के अनुसार सोचता हूँ तो कर्तृत्व का अभिमान मिथ्या लगता है। मैं तभी दूसरे को सुख दे सकता हूँ अथवा दुःख दूर कर सकता हूँ, जब दूसरे का पुण्यकर्म उदय में हो! दूसरा व्यक्ति तभी मेरा अशुभ कर सकता है, मेरा सुख छीन सकता है, मुझे दुःख दे सकता है, जब मेरा पापकर्म उदय में आया हो। ___ मैंने उस भाई से कहा : 'तुमने अपने भाइयों के लिये कुछ नहीं किया है, तुम्हारे भाइयों के पुण्यकर्म ने तुम्हारे पास कुछ करवाया है। तुम्हारे हृदय में भाइयों के प्रति जो प्रेम है, वह भी भाइयों के पुण्य-कर्म की वजह से है! यदि उनका पापकर्म उदय में आ जाए तो तुम्हारे हृदय में उनके प्रति प्रेम नहीं रहेगा, तुम उनको घर से निकाल दोगे...। तुम मानोगे कि 'मैंने उनको घर से निकाल दिया।' यह भी भ्रमणा है...। उनके पापकर्मों ने तुम्हारे पास यह काम करवाया... उनको घर से निकलवाया। यदि तुम्हारे भाई यह मान लें कि 'हमारे बड़े भाई साहब ने हमको घर से निकाल दिया...' तो गलत है! भ्रमणा है! दो भाइयों की घर से निकल जाने की क्रिया अवश्य हुई है, परन्तु किसने निकाला?' इसका निर्णय ज्ञानदृष्टि से होना चाहिए। __ छोटे भाई समझें कि 'बड़े भैया ने हमको निकाल दिया', तो गलत होगा। क्योंकि उनके हृदय में बड़े भाई के प्रति रोष पैदा होगा। रोष से पापकर्म बंधेगे। बड़ा भाई समझे कि 'मैंने दो भाइयों को निकाल दिया...।' तो बड़े भाई का मिथ्याभिमान दृढ़ होगा, इससे पापकर्म बंधेगे! जिस मान्यता से पापकर्म बंधते हों, वह मान्यता सही नहीं हो सकती। For Private And Personal Use Only
SR No.009641
Book TitleYahi Hai Jindgi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2009
Total Pages299
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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