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हुआ है। संघ-साधु और धर्म की निंदा व्यापक बनी है। चूंकि लोग ज्यादातर अज्ञानी हैं। आत्मा को जानते नहीं, कर्मसिद्धांत को जानते नहीं। ___कुछ धर्मोपदेशक भी लोगों को उन्मार्ग बताते हैं जिन्होंने आगम ग्रंथों का अध्ययन नहीं किया है, प्राचीन महान आचार्यों के धर्मग्रंथों का अध्ययन, मननचिंतन नहीं किया है। वैसे कुछ साधु उपदेशक बन गए हैं! कुछ धर्मग्रंथों के विद्वान, 'शास्त्रों का जो अर्थ मैं करता हूँ वही सही है' ऐसा आग्रह रखते हुए, लोगों को अन्य साधु पुरुषों के प्रति द्वेषी बनाते जा रहे हैं।
कोई केवलज्ञानी अवधिज्ञानी महापुरुष अपने इस भरतक्षेत्र में हैं नहीं... किससे जा कर सत्य-असत्य का निर्णय करें? ऐसी परिस्थिति में चेतन, एक सावधानी रखना- किसी की निंदा नहीं करना, किसी पूज्य तत्त्व की आशातना नहीं करना।
'सम्यग्दर्शन' के प्रकाश में जीवनयात्रा करना है। हृदय में समताभाव रखना, मोक्ष की अभिरुचि बनाए रखना, संसार के प्रति वैराग्यवासना बनाए रखना और दुनिया के सभी जीवों के प्रति मैत्री भाव बनाए रखना। दुःखी जीवों के प्रति करुणा का स्रोत बहाते रहना। धर्म की ये मूलभूत बातें हैं।
सर्वज्ञ शासन के प्रति तेरी श्रद्धा अखंड, अविच्छिन्न बनी रहे, और तू मोक्षमार्ग पर निरंतर गति-प्रगति करता रहे - यही मंगल कामना,
- भद्रगुप्तसूरि
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