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अब एक महत्वपूर्ण और अंतिम उपाय बताता हूँ।
शीलधर्म का पालन! स्वपत्नी में संतोष रखनेवाला, परस्त्री का त्यागी सदाचारी पुरुष और स्वपति में ही संतुष्ट, पर-पुरुष की त्यागी स्त्री, ये दोनों शातावेदनीय कर्म बाँधते हैं। जितना ज्यादा ब्रह्मचर्य का पालन करता है मनुष्य, उतना ही प्रगाढ़ शातावेदनीय कर्म बाँधता है।
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हर जीवात्मा अपने जीवन में सुख-शांति चाहता है । मन की शांति और शरीर का स्वास्थ्य कौन नहीं चाहता ? वह पाने के ये सारे उपाय ज्ञानी पुरुषों ने बताए हैं ।
इस जीवन में तो पूर्व जन्मों में उपार्जित शातावेदनीय और अशातावेदनीय कर्मों को भोगने के हैं, परंतु भविष्य अपने हाथ में है ! भविष्य को सुखमय और शांतिमय चाहते हैं, तो ये सारे उपाय - हमारी आराधना बन जानी चाहिए ।
शातावेदनीय के उदय में स्वस्थता और अशातावेदनीय के उदय में समताभाव बनाए रखना।
तू स्वस्थ रहे, यही शुभ कामना,
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भद्रगुप्तसूरि