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काम करती है।
एक दिन उसका पति आर्थिक संकट में फंस गया । पाँच लाख रुपये का नुकसान हो गया था। वह उसकी माँ को बता रहा था... इस लड़की ने द्वार की ओट में खड़े-खड़े सुन लिया। जब उसका पति बेड रूम में गया, उस लड़की ने अपने सोने के अलंकारों का डिब्बा ला कर पति के सामने रख दिया। पति ने पूछाः 'क्या बात है?' उसने कहाः ‘आप बेच दें अलंकारों को, दो-तीन लाख रुपये आ जाएँगे| जब आप कमाएँगे तब बनवा लूँगी अलंकार।' पति गद्गद हो गया। पत्नी की महानता देख कर, उसका सर झुक गया। जब लड़की की सास को मालूम हुई यह बात वह भी बहू को छाती से लगा कर फफक-फफक कर रो दी। बाद में कभी भी सास और पति ने उसको मंदिर जाने से रोका नहीं, सामायिक करने से रोका नहीं!'
लड़की ने कैसा शातावेदनीय कर्म बाँधा होगा! श्रेष्ठ और अपूर्व!
चेतन, शातावेदनीय कर्म बाँधने के ये सारे उपाय हैं। दो-तीन और उपाय बताकर पत्र पूर्ण करूँगा। एक उपाय है बीमार की सेवा | जो रुग्ण हैं, ग्लान हैं... दर्दी हैं... उनकी सेवा करने से शातावेदनीय कर्म बंधता है। बच्चा हो या बूढ़ा हो... गृहस्थ हो या साधु-संत हो, मनुष्य हो या पशु हो... सेवा करते रहो.... शातावेदनीय बाँधते रहो! ऐसा प्रकृष्ट पुण्य कर्म जीव बाँधता है कि उसका श्रेष्ठ फल भोगने के लिए स्वर्ग में ही जाना पड़ता है। देवगति में ही जाता है जीव! ____ गुरुसेवा, शातावेदनीय बाँधने का एक श्रेष्ठ उपाय है। भक्तिभाव से उचित भिक्षा देना, वस्त्र देना, आवास देना और औषध देना। साधु-साध्वी की ज्ञानोपासना में सहायक बनना। ज्ञानोपकरण प्रदान करना । प्रशंसा और गुणानुवाद करना। बीमारी में दिन-रात सेवा में तत्पर रहना। __जिनपूजा! शातावेदनीय बाँधने का अद्भुत उपाय है। तीर्थंकर परमात्मा के प्रति हृदय में प्रीति हो, भक्ति हो... और उल्लसित भाव से जिनचैत्य में जाते हो... श्रेष्ठ द्रव्यों से परमात्मपूजन करते हो... भावविभोर हो एकाग्र मन से परमात्मा की स्तुति-स्तवना करते हो... विधि से और सावधानी से इस प्रकार जिनपूजा करते हो, तो उत्कृष्ट शातावेदनीय कर्म बाँधते हो।
यह तो स्वेच्छा से जिनपूजा और गुरुसेवा की बात कही, अनिच्छा से भी जो जिनपूजा करता है, गुरुसेवा करता है (किसी के दबाव से या भय से अथवा स्वार्थ से...) तो भी शातावेदनीय कर्म बाँधता है!
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