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पत्र :
प्रिय चेतन, धर्मलाभ! तेरा पत्र मिला, आनंद हुआ। तेरी समस्या इस प्रकार है : 'मेरा एक मित्र पैसा कमाने का भरसक प्रयत्न करता है, फिर भी वह सफल नहीं हो पाता है... जब कि वह पढ़ा-लिखा है और बुद्धिमान है, ऐसा क्यों होता है?'
चेतन, यह समस्या अनेक... लाखों-करोड़ों की है। पुरुषार्थ करने पर भी इच्छित वस्तु की प्राप्ति नहीं होती है। मनुष्य निराश हो जाता है और कुछ लोग तो आत्महत्या भी कर डालते हैं। कुछ लोग परिवार के प्रति, कुछ लोग समाज व्यवस्था के प्रति और कुछ लोग राज्यतंत्र के प्रति आक्रोश व्यक्त करते हैं। अर्थहीन क्रोध करते हैं। श्रीमंत-धनवानों के प्रति द्वेष और धिक्कार की दुर्भावना अभिव्यक्त करते हैं।
चूँकि वे लोग अप्राप्ति-अलाभ का वास्तविक कारण नहीं जानते हैं। किसी भी बात का वास्तविक कारण जानने पर क्रोध और आक्रोश उठता ही नहीं है। मनोवांछित की अप्राप्ति का मूल कारण है लाभांतराय कर्म। यह कारण अदृश्य है। इस कारण को देख नहीं सकते है... सूंघ नहीं सकते हैं... चख नहीं सकते हैं। इस कारण को ज्ञानी ही जान सकते हैं। अज्ञानदशा में जीव 'लाभांतराय कर्म' बाँधता रहता है! एक बार नहीं, अनेक बार! जब वह कर्म उदय में आता है, तब इच्छित-प्राप्ति के सभी द्वार बंद हो जाते हैं। इच्छित... प्रिय वस्तु की अप्राप्ति से मनुष्य अशांत, संतप्त और उद्विग्न बनता है। पुरुषार्थ को, महान पुरुषार्थ को भी यह 'लाभांतराय कर्म' निष्फल कर देता है।
चेतन, तू शायद नहीं जानता है कि यह 'लाभांतराय कर्म' जीव कैसे बाँधता है। बताता हूँ, इस कर्मबंध के कुछ कारण | जानकर, वैसे कार्य नहीं करने का संकल्प करना होगा। ___- दूसरों की इच्छित प्राप्ति में विघ्न डालने से, रुकावटें करने से यह कर्म बँधता है।
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