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यदि तुझे दानधर्म की आराधना करना है तो यह नहीं सोचना कि 'मेरा दानांतराय कर्म' मुझे दानधर्म करने से रोकता है।' तुझे यह सोचना चाहिए कि : 'मुझे कृपण नहीं बनना है, लोभी नहीं बनना है, यदि मेरी संपत्ति का दान नहीं दूंगा तो यह संपत्ति मुझे विपत्ति में डाल देगी, मेरी धन की आसक्ति, मुझे दुःखी करेगी।' यदि तू तेरे लिए 'दानांतराय कर्म' के अवरोध करेगा तो ठगा जाएगा! तेरा मन दानधर्म के लिए तत्पर नहीं बनेगा।
चेतन, 'लाभांतराय कर्म' के विषय में विशेष बातें आगे के पत्र में लिखूगा। बहुत से लोगों के लिए यह कर्म ‘समस्या' बना हुआ है। इसलिए समाधान अनिवार्य है। तू स्वस्थ रहे, यही कामना ।
- भद्रगुप्तसूरि
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