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- कोई व्यक्ति को व्यापार में अर्थ प्राप्ति होने जा रही है, तुझे मालूम हुआ। ईर्ष्या पैदा हुई। 'नहीं, मैं उसको अर्थप्राप्ति-धनप्राप्ति नहीं होने दूंगा।' ऐसा सोचकर तूने उस व्यक्ति के मार्ग में विघ्न डाल दिया। उसको अर्थप्राप्ति नहीं होने दी, अथवा बहुत परेशानी के बाद प्राप्त हुई। तूने लाभांतराय कर्म बाँध लिया।
- तेरे व्यापार में एक साझेदार-पार्टनर है। सरल है। तेरे पर विश्वास करता है। तू भी उसके साथ अच्छा व्यवहार करता है। व्यापार में तेरी कंपनी ने दस लाख कमाए हैं। तेरे पार्टनर को पाँच लाख, उसके हिस्से के मिलने चाहिए। उस समय तू तेरे पार्टनर को जैसे-तैसे समझाकर उसको दो-तीन लाख रुपये ही देता है। झूठ बोलकर उसको पटा लेता है...। चेतन, तू लाभांतराय कर्म बाँधता है! साथ-साथ दूसरे भी पाप कर्म बाँधता है।
- मान ले कि तुझे परमात्मा के मंदिर जाना, दर्शन-पूजन करना पसंद नहीं है... तू नहीं जाता है मंदिर में | परंतु जो जाते हैं उनको भी तू रोकता है | दर्शनपूजन में अंतराय करता है, नहीं करने देता है परमात्मा के दर्शन-पूजन, तो तू अंतराय कर्म बाँधता है, लाभांतराय कर्म बाँधता है।
- मान ले कि तुझे किसी कारण से या निष्कारण कोई साधु-मुनिराज के प्रति दुर्भाव जगा, तू उनको भिक्षा नहीं देता है, दूसरों को भी कहता है: 'उस मुनिराज को भिक्षा नहीं देना, दूसरों को भिक्षा देने से रोकता है। मुनिराज की भिक्षा-प्राप्ति में अंतराय-विघ्न डालता है, तो तू लाभांतराय कर्म बाँधता है।
उस 'संगम' देव ने भगवान महावीर स्वामी को छ: महीने तक भिक्षा नहीं लेने दी थी न? जहाँ-जहाँ भगवान भिक्षा लेने जाते, संगम भिक्षा को
दूषित कर देता था, भगवान को भिक्षा नहीं मिलती थी। भगवान के सत्त्व को विचलित करने चला था! मनोबल को तोड़ने आया था वह स्वर्गलोक से! विचलित नहीं कर सका, मनोबल नहीं तोड़ सका! वैसे ही 'लाभांतराय कर्म' बाँधकर चला गया। ___ - तेरे कोई परिचित व्यक्ति ने कोई व्यापार किया है। तुझे मालूम हुआ कि इस व्यापार में वह लाख-पाँच लाख... कमानेवाला है। तेरे मन में पाप आया - 'नहीं, मैं उसको कमाने नहीं दूंगा।' तूने जाकर सरकार में सूचना दे दी। उस व्यक्ति की नाव किनारे पर डूब जाती है। तू 'लाभांतराय कर्म' बाँध लेता है।
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