________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
'योगदर्शन' में श्री पतंजलि ने कर्म के दो भेद बताए हैं -
१. दृष्ट जन्म-वेदनीय, २. अदृष्ट जन्म-वेदनीय । __जिस कर्म का जिस भव में संचय किया जाता है, उसी भव में उस कर्म का फल भोगा जाता है, उसका नाम है दृष्ट जन्म-वेदनीय और जिस संचित कर्म का फल दूसरे जन्म में भोगा जाता है वह है अदृष्ट जन्म-वेदनीय ।
इन दो प्रकार के कर्मों के दो दो उपभेद हैं - १. नियत विपाक और २. अनियत विपाक। जिस कर्म का फल अवश्य भोगना पड़ता है वह नियत विपाक' कहा जाता है और जिस कर्म का फल भोगना पड़े, नहीं भी भोगना पड़े, उसका नाम 'अनियत विपाक' है।
"बौद्धदर्शन' में कर्म के तीन प्रकार बताए गए हैं : कुशल, अकुशल और अव्याकृत। इसी के अर्थ में दूसरे तीन प्रकार बताए गए हैं : सुख-वेदनीय, दुःखवेदनीय और न-दुःख-सुख-वेदनीय।
पहले प्रकार का कर्म सुख का अनुभव कराता है, दूसरे प्रकार का कर्म दुःख का अनुभव कराता है और तीसरे प्रकार का कर्म न सुख का, न दुःख का अनुभव कराता है।
कुशल, अशुकल और अव्याकृत कर्म के दो-दो भेद हैं : नियत और अनियत ।
'नियत' कर्म के तीन प्रकार हैं : दृष्ट धर्म-वेदनीय, उपपद्य वेदनीय और अपर पर्याय वेदनीय।
'अनियत' कर्म के दो प्रकार हैं : विपाक-काल और अनियत विपाक।
'दृष्ट धर्म वेदनीय' कर्म के दो प्रकार हैं : सहसा वेदनीय और असहसा वेदनीय। 'उपपद्य वेदनीय' और 'अपर पर्याय वेदनीय' के चार प्रकार हैं : १. विपाक-कालनियत विपाकानियत, २. विपाकनियत विपाककाल अनियत, ३. नियत विपाक नियत वेदनीय, ४. अनियत विपाक अनियत वेदनीय. 'वेदांतसूत्र' में कर्म के दो प्रकार बताए हैं : प्रारब्ध कार्य और अनारब्ध कार्य। 'योगदर्शन' में आत्मा को आवृत करने वाली दो शक्तियाँ बताई गई हैं : माया
३०
For Private And Personal Use Only