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पत्र: ॥
प्रिय चेतन, धर्मलाभ! तेरा पत्र मिला। आनंद।
आत्मा और कर्म के संबंध में तूने जो लिखा - तपाए हुए लोहे के गोले के साथ जैसा अग्नि का संबंध है, वैसा आत्मा और कर्मों का संबंध है क्या?' हाँ, है वैसा संबंध। संतप्त लोहगोलक के कण-कण में जैसे अग्नि व्याप्त होती है वैसे आत्मा के हर प्रदेश में कर्म व्याप्त हैं, सिवाय आठ 'रूचक प्रदेश'। तू कहेगा ये 'रूचक प्रदेश' क्या होते हैं? 'आत्मा के असंख्य प्रदेश में अनादिकाल से ये आठ प्रदेश कर्ममुक्त होते हैं। यह नियम सभी संसारवर्ती जीवात्माओं के लिए समान रूप से है। सिद्ध आत्माओं के सभी आत्मप्रदेश कर्ममुक्त होते हैं। आठ कर्ममुक्त आत्मप्रदेशों का नाम ‘रूचक प्रदेश' दिया गया है।
चेतन, आत्मा और कर्म का संबंध दूध और पानी के दृष्टांत से भी समझाया गया है। जैसे दूध के साथ पानी का संबंध होता है, वैसा आत्मा और कर्म का संबंध है। दूध से पानी को अलग किया जा सकता है, वैसे आत्मा से कर्मों को दूर किया जा सकता है।
तीसरी उपमा सूर्य और बादल की भी दी जाती है। जिस प्रकार सूर्य बादलों से ढक जाता है वैसे कर्मों से आत्मा आवृत है। आत्मा पर कर्मों का आवरण होता है । बादल का आवरण दूर होने पर जैसे सूर्य झगमगाता है वैसे कर्म दूर होने पर आत्मा मूल रूप में प्रगट होती है।
आत्मा और कर्म के संबंध में, अब तेरे मन में स्पष्टता हो जाएगी।
चेतन, आचार्य श्री हरिभद्रसूरिजी ने लिखा है : न हि नाममात्र भेदेन भावा भिद्यन्ते । नाम के भेद से तत्त्व में भेद नहीं आता है। हम जिनको पाप कर्म और पुण्य कर्म कहते हैं, दूसरे कुछ धर्मवाले 'कुशल' और 'अकुशल' (पाप) कहते हैं। शुक्ल (पुण्य) और कृष्ण (पाप) भी कहते हैं। भगवद्गीता में सत्व, रजस्, तमस् - ये तीन भेद कर्म के बताए हैं।
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