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वैसे कुछ कर्म ऐसे बँधते हैं... जो तप से, ज्ञान से या ध्यान से नष्ट नहीं होते हैं। वे कर्म भोगने से ही नष्ट होते हैं। हाँ उनकी स्थिति और रस में परिवर्तन अवश्य आ सकता है. ___ - चौथा प्रकार है 'निकाचित' कर्मबंध। यह कर्मबंध सबसे ज्यादा प्रगाढ़ होता है। अति तीव्र अध्यवसाय से (शुभ या अशुभ) यह कर्मबंध होता है। इन्हें भुगतना ही पड़ता है इसमें कोई भी परिवर्तन नहीं आ सकता हैं।
कर्मबंध की ये सारी प्रक्रियाएँ हैं। क्या करने से कौन से और कैसे कर्म बँधते हैं, यह अभी नहीं लिखता हूँ। अभी एक या दो पत्रों में, दूसरे वैदिक, बौद्ध वगैरह धर्मों में 'कर्म' के विषय में क्या लिखा गया है, वे बातें बताऊँगा। आत्मवादी दर्शनों में जिस प्रकार आत्मा के विषय में चिंतन हुआ है, वैसे आत्मा को आवृत करनेवाले तत्त्वों के विषय में भी गहरा चिंतन हुआ है।
तू एकाग्रता से इन पत्रों को पढ़ना। शांति से पढ़ना । तू स्वस्थ रहे, प्रसन्नचित्त रहे - यही मंगलकामना ।
- भद्रगुप्तसूरि
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