________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
काम है। चूंकि, हसने में और खुश-नाखुश होने में मनुष्य कुछ समझता ही नहीं है। वैसे भय में, शोक करने में और जुगुप्सा करने में 'मैं पाप कर रहा हूँ, यह बात मनुष्य को याद नहीं आती है। इन नो-कषायों को मनुष्य स्वाभाविक समझता
है।
वैसे तीन वेदों की बात भी वैसी ही है। वेदोदय को निसर्गदत्त शक्ति मानते हैं। इसलिए 'सेक्सी वृत्ति' का दमन या शमन करने का विचार भी नहीं आता है मनुष्य को।
चेतन, मोहनीय कर्म सभी कर्मों में ज्यादा खतरनाक है। हो सके वहाँ तक, इस कर्म को बाँधने से बचना | मोहनीय कर्म ही जीव का सबसे बड़ा शत्रु है । शत्रु को घर में आने का निमंत्रण नहीं देना चाहिए | मोहनीय कर्म के बंध हेतुओं का सेवन करना, यही निमंत्रण है। इस जीवन में कर्म बाँधने के नहीं हैं, कर्मों का नाश करने का है।
- भद्रगुप्तसूरि
२५९
For Private And Personal Use Only