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लोगों का संपर्क, मिथ्याधर्मों की प्रशंसा, मिथ्याधर्मों के प्रति आकर्षण... ये भी दर्शन मोहनीय कर्म बाँधने के हेतु हैं।
- अब चारित्रमोहनीय कर्म-बंध के हेतु बताता हूँ। - चारित्र मोहनीय कर्म दो प्रकार का होता है। कषाय मोहनीय और नो
कषाय मोहनीय। - कषायों के उदय से कषाय-मोहनीय कर्म बँधता है, - नो-कषायों के उदय से नो-कषाय-मोहनीय कर्म बँधता है।
इसलिए कषाय और नो-कषायों को उदय में ही नहीं लाने चाहिए। कषायों का भीतर में दमन-शमन कर देना चाहिए।
१. क्रोध के उदय से क्रोध-मोहनीय कर्म बँधता है, २. मान के उदय से मान-मोहनीय कर्म बँधता है, ३. माया के उदय से माया-मोहनीय कर्म बँधता है, ४. लोभ के उदय से लोभ-मोहनीय कर्म बँधता है।
यह तो कषायों के उदय से कषायों के बंध की बात हुई। अब नो-कषायों की बात बता देता हूँ।
१. हास्य के उदय से हास्य मोहनीय कर्म बँधता है, २. रति के उदय से रति-मोहनीय कर्म बँधता है, ३. अरति के उदय से अरति-मोहनीय कर्म बँधता है, ४. भय के उदय से भय-मोहनीय कर्म बँधता है, ५. शोक के उदय से शोक-मोहनीय कर्म बँधता है, ६. जुगुप्सा के उदय से जुगुप्सा-मोहनीय कर्म बंधता है। ७. पुरुष वेद के उदय से पुरुषवेद बँधता है, ८. स्त्री वेद के उदय से स्त्री वेद बँधता है, ९. नपुंसक वेद के उदय से नपुंसक-वेद बँधता है।
मनुष्य का मन कषाय परवश और नो-कषाय-परवश होता है तो वह कषायनोकषाय मोहनीय कर्म बाँधता है। इसलिए ज्ञानी पुरुष कहते हैं 'कषायविजय' करो। नो-कषायों से भी दूर रहो। वैसे नो-कषायों से मन को बचाना मुश्किल
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