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- कागजों को जलाना, - कागजों को गटर में डालना। - जूते पहनकर धर्म की किताबें पढ़ना। - जूठे मुँह, खाते-खाते बोलना, - मंदिर में जुआ खेलना वगैरह पाप करना, - किताब के ऊपर या अखबार के ऊपर बैठना, - केवलज्ञान आदि प्रत्यक्ष ज्ञान का अलाप करना नहीं मानना।
चेतन, इस प्रकार ज्ञानावरण-दर्शनावरण कर्म जीव बाँधता है। वैसे दर्शनावरणकर्म बाँधने के कुछ विशेष हेतु भी हैं। खास कर के पाँच इंद्रियों को (दूसरों को) नुकसान पहुँचाना। इंद्रियों की शक्तियों का दुरुपयोग करना।
इस प्रकार कर्मबंध के हेतुओं को समझकर, उन हेतुओं का त्याग करना। अनजानपन में जो कुछ आशातनाएँ की हों, उसकी आलोचना कर, प्रायश्चित्त कर, शुद्ध होना।
- भद्रगुप्तसूरि
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